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________________ बीसवाँ प्रकरण आयुर्वेद सिद्धान्तरसायनकल्प: दिगम्बराचार्य उग्रादित्य ने 'कल्याणकारक' नामक वैद्यकग्रंथ की रचना की है । उसके बीसवें परिच्छेद (श्लो० ८६) में समंतभद्र ने 'सिद्धान्तरसायनकल्प' की रचना की, ऐसा उल्लेख है। इस अनुपलब्ध ग्रन्थ के जो अवतरण यत्र-तत्र मिलते हैं वे यदि एकत्रित किये जायँ तो दो-तीन हजार श्लोक-प्रमाण हो जायँ । कई विद्वान् मानते हैं कि यह ग्रंथ १८००० श्लोक-प्रमाण था। इसमें आयुर्वेद के आठ अङ्गों--काय, बल, ग्रह, जाग, शल्य, दंष्ट्रा, जरा और विष-के विषय में विवेचनं था जिसमें जैन पारिभाषिक शब्दों का ही उपयोग किया गया था। इन शब्दों के स्पष्टीकरण के लिये अमृतनंदि ने एक कोश-ग्रन्थ की रचना भी की थी जो पूरा प्राप्त नहीं हुआ है। पुष्पायुर्वेद : ___ आचार्य समंतभद्र ने परागरहित १८००० प्रकार के पुष्पों के बारे में 'पुष्पायुर्वेद' नामक ग्रन्थ की रचना की थी। वह ग्रन्थ आज नहीं मिलता है। अष्टांगसंग्रह : ___ समंतभद्राचार्य ने 'अष्टाङ्गसंग्रह' नामक आयुर्वेद का विस्तृत ग्रंथ रचा था, ऐसा 'कल्याणकारक' के कर्ता उग्रादित्य ने उल्लेख किया है। उन्होंने यह भी कहा है कि उस 'अष्टाङ्गसंग्रह' का अनुसरण करके मैंने 'कल्याणकारक' ग्रन्थ संक्षेप में रचा है। १. भष्टाङ्गमप्यखिलमत्र समन्तभदैः, प्रोक्त सविस्तरमथो विभवैः विशेषात् । संक्षेपतो निगदितं तदिहात्मशक्त्या, कल्याणकारकमशेषपदार्थयुक्तम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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