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उन्नीसवाँ प्रकरण
कोष्ठक
कोष्ठकचिन्तामणि
आगमगच्छीय आचार्य देवरत्नसूरि के शिष्य आचार्य शीलसिंहसूरि ने प्राकृत में १५० पद्यों में 'कोष्ठकचिन्तामणि' नामक ग्रंथ की रचना की है। संभवतः १३ वीं शताब्दी में इसकी रचना की गई होगी, ऐसा प्रतीत होता है ।
इस ग्रंथ में ९, १६, २० आदि कोष्ठकों में जिन-जिन अंकों को रखने का विधान किया है उनको चारों ओर से गिनने पर जोड़ एक समान आता है। इस प्रकार पंदरिया, बीसा, चौतीसा आदि शताधिक यन्त्रों के बारे में विवरण है।
यह ग्रंथ अभी प्रकाशित नहीं हुआ है। कोष्ठकचिन्तामणि-टीका : __ शीलसिंहसुरि ने अपने 'कोष्ठकचिंतामणि' ग्रंथ पर संस्कृत में वृत्ति भी रची है।
१. मूल ग्रन्थसहित इस टीका की १०१ पत्रों की करीब १६ वीं शताब्दी
में लिखी गई प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, महमदाबाद में है।
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