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सत्रहवां प्रकरण
आय
आयनाणतिलय (आयज्ञानतिलक):
'आयनाणतिलय' प्रश्न-प्रणाली का ग्रंथ है । भट्ट वोसरि ने इस कृति को २५ प्रकरणों में विभाजित कर कुल ७५० प्राकृत गाथाओं में रचा है।
भट्ट वोसरि दिगम्बर जैनाचार्य दामनंदि के शिष्य थे। मल्लिषेणसूरि ने, जो सन् १०४३ में विद्यमान थे, 'आयज्ञानतिलक' का उल्लेख किया है। इससे भट्ट वोसरि उनसे पहिले हुए यह निश्चित है।
भाषा की दृष्टि से यह ग्रंथ ई० १०वीं शताब्दी में रचित मालूम होता है। प्रश्नशास्त्र की दृष्टि से यह कृति अतीव महत्त्वपूर्ण है। इसमें ध्वज, धूम, सिंह, गज, खर, स्वान, वृष और ध्वांच-इन आठ आयों द्वारा प्रश्नफलों का रहस्यात्मक एवं सुंदर वर्णन किया है। ग्रंथ के अंत में इस प्रकार उल्लेख है : इति दिगम्बराचार्यपण्डितदामनन्दिशिष्यभट्टवोसरिविरचिते...।
यह ग्रंथ अप्रकाशित है।'
'आयज्ञानतिलक' पर भट्ट वोसरि ने १२०० श्लोक-प्रमाण खोपज्ञ टीका लिखी है, जो इस विषय में उनके विशद ज्ञान का परिचय देती है। आयसभाषः
'आयसद्भाव' नामक संस्कृत ग्रंथ की रचना दिगम्बराचार्य जिनसेनसूरि के शिष्य आचार्य मलिषेण ने की है। ग्रंथकार संस्कृत, प्राकृत भाषा के उद्भट विद्वान् थे। वे धारवाड़ जिले के अंतर्गत गदग तालुके के निवासी थे। उनका समय सन् १०४३ (वि० सं० ११००) माना जाता है।
कर्ता ने प्रारंभ में ही सुग्रीव आदि मुनियों द्वारा 'आयसद्भाव' की रचना करने का उल्लेख इस प्रकार किया है :
१. इसकी वि० सं० १४४१ में लिखी गई हस्तलिखित प्रति मिलती है।
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