________________
२२०
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास जैन आसीद् जगद्वन्द्यो गर्गनामा महामुनिः । तेन स्वयं निर्णीतं यत् सत्पाशाऽत्र केवली । एतज्ज्ञानं महाज्ञानं जैनर्षिभिरुदाहृतम् । .
प्रकाश्य शुद्धशीलाय कुलीनाय महात्मभिः।। - 'मदनकामरत्न' ग्रंथ में भी ऐसा उल्लेख मिलता है। यह ग्रन्थ संस्कृत में था या प्राकृत में, यह ज्ञात नहीं है। गर्ग मुनि कब हुए, यह भी अज्ञात है । ये अति प्राचीन समय में हुए होंगे, ऐसा अनुमान है। इन्होंने एक 'संहिता' ग्रन्थ की भी रचना की थी। पाशाकेवली : ___ अशातकर्तृक 'पाशाकेवली' ग्रन्थ में संकेत के पारिभाषिक शब्द अदअ, अअय, अयय आदि के अक्षरों के कोष्ठक दिये गये हैं। उन कोष्ठकों के अ प्रकरण, व प्रकरण, य प्रकरण, द प्रकरण- इस प्रकार शीर्षक देकर शुभाशुभ ‘फल संस्कृत भाषा में बताये गये हैं। ग्रन्थ के प्रारम्भ में इस प्रकार लिखा है :
संसारपाशछित्यर्थं नत्वा वीरं जिनेश्वरम् ।
आशापाशावने मुक्तः पाशाकेवलिः कथ्यते ।। ग्रन्थ अप्रकाशित है।
१. इसकी १० पत्रों की प्रति ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर,
महमदाबाद में है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org