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पन्द्रहवां प्रकरण
रमल
पासों पर बिन्दु के आकार के कुछ चिह्न बने रहते हैं। पासे फेंकने पर उन चिह्नों की जो स्थिति होती है उसके अनुसार हरएक प्रश्न का उत्तर बताने की एक विद्या है । उसे पाशकविद्या या रमलशास्त्र कहते हैं।
__ 'रमल' शब्द अरबी भाषा का है और इस समय संस्कृत में जो ग्रन्थ इस विषय के प्राप्त होते हैं उनमें अरबी के ही पारिभाषिक शब्द व्यवहृत किये मिलते हैं। इससे यह स्पष्ट है कि यह विद्या अरब के मुसलमानों से आयी है । अरबी ग्रन्थों के आधार पर संस्कृत में कई ग्रन्थ बने हैं, जिनके विषय में यहाँ कुछ जानकारी प्रस्तुत की जा रही है।
रमलशास्त्र:
'रमलशास्त्र' की रचना उपाध्याय मेघविजयजी ने वि० सं० १७३५ में की है। उन्होंने अपने 'मेघमहोदय' ग्रन्थ में इसका उल्लेख किया है। अपने शिष्य मुनि मेरुविजयजी के लिये उपाध्यायजी ने इस कृति का निर्माण किया था । ___ यह ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ है । रमलविद्या
'रमलविद्या' नामक ग्रन्थ की रचना मुनि भोजसागर ने १८ वीं शताब्दी में की है। इस ग्रन्थ में कर्ता ने निर्देश किया है कि आचार्य कालकसूरि इस विद्या को यवनदेश से भारत में लाये । यह ग्रन्थ अप्रकाशित है।
मुनि विजयदेव ने भी 'रमलविद्या' सम्बन्धी एक ग्रन्थ की रचना की थी, ऐसा उल्लेख मिलता है। पाशककेवली:
'पाशककेवली' नामक ग्रंथ की रचना गर्गाचार्य ने की है। इसका उल्लेख इस प्रकार मिलता है:
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