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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास ध्याय और सूरिपद प्राप्त होने का 'यव' कहाँ होता है, यह बताया गया है । अंत में मनुष्य की परीक्षा करके 'व्रत' देने की बात का स्पष्ट उल्लेख है ।'
कर्ता ने अपने नाम का या रचना-समय का कोई उल्लेख नहीं किया है । सामुद्रिक :
'सामुद्रिक' नाम की प्रस्तुत कृति संस्कृत भाषा में है। पाटन के भंडार में विद्यमान इस कृति के ८ पत्रों में पुरुष-लक्षण ३८ श्लोकों में और स्त्री-लक्षण भी ३८ पद्यों में हैं। कर्ता का नामोल्लेख नहीं है परन्तु मंगलाचरण में मादिदेवं प्रणम्यादौ' उल्लिखित होने से यह जैनाचार्य की रचना मालूम होती है। इसमें पुरुष और स्त्री की हस्तरेखा और शारीरिक गठन के आधार पर शुभाशुभ फलों का निर्देश किया गया है। सामुद्रिकतिलक :
'सामुद्रिकतिलक' के कर्ता जैन गृहस्थ विद्वान् दुर्लभराज हैं। ये गुर्जरनृपति भीमदेव के अमात्य थे। इन्होंने १. गजप्रबंध, २. गजपरीक्षा, ३. तुरंगप्रबंध, ४. पुरुष-स्त्रीलक्षण और ५. शकुनशास्त्र की रचना की थी, ऐसी मान्यता है। पुरुष-स्त्रीलक्षण की पूरी रचना नहीं हो सकी होगी इसलिये उनके पुत्र जगदेव ने उसका शेष भाग पूरा किया होगा, ऐसा अनुमान है। ___ इस ग्रन्थ में पुरुषों और स्त्रियों के लक्षण ८०० आर्याओं में दिये गये हैं। यह ग्रन्थ पांच अधिकारों में विभक्त है जो क्रमशः २९८, ९९, ४६, १८८ और १४९ पद्यों में हैं। __प्रारम्भ में तीर्थंकर ऋषभदेव और ब्राह्मी की स्तुति करने के अनन्तर सामुद्रिकशास्त्र की उत्पत्ति बताते हुइ क्रमशः कई ग्रन्थकारों के नामों का निर्देश किया गया है। ___ प्रथम अधिकार में २९८ श्लोकों में पादतल से लेकर सिर के बाल तक का वर्णन और उनके फलों का निरूपण है।
१. यह ग्रंथ संस्कृत छाया, हिंदी अनुवाद, कचित् स्पष्टीकरण और पारिभाषिक
शब्दों की अनुक्रमणिकापूर्वक प्रो० प्रफुल्लकुमार मोदी ने संपादित कर भारतीय ज्ञानपीठ, काशी से सन् १९५४ में दूसरा संस्करण प्रकाशित किया है। प्रथम संस्करण सन् १९४७ में प्रकाशित हुआ था।
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