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सामुद्रिक ।
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द्वितीय अधिकार में ९९ श्लोकों में क्षेत्रों की संहति, सार आदि आठ प्रकार और पुरुष के ३२ लक्षण निरूपित हैं। __तृतीय अधिकार में ४६ श्लोकों में आवर्त, गति, छाया, स्वर आदि विषयों की चर्चा है।
चतुर्थ अधिकार में १४९ श्लोकों में स्त्रियों के व्यञ्जन, स्त्रियों की देव वगैरह बारह प्रकृतियाँ, पद्मिनी आदि के लक्षण इत्यादि विषय हैं।
अन्त में १० पद्यों की प्रशस्ति है जो कवि जगदेव ने रची है। यह ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हुआ है। सामुद्रिकशास्त्र: ___ अज्ञातकर्तृक 'सामुद्रिकशास्त्र' नामक कृति में तीन अध्याय हैं जिनमें क्रमशः २४, १२७ और १२१ पद्य हैं। प्रारंभ में आदिनाथ तीर्थकर को नमस्कार करके ३२ लक्षणों तथा नेत्र आदि का वर्णन करते हुए हस्तरेखा आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
द्वितीय अध्याय में शरीर के अवयवों का वर्णन है। तीसरे अध्याय में स्त्रियों के लक्षण, कन्या कैसी पसन्द करनी चाहिये एवं पद्मिनी आदि प्रकार -वर्णित हैं।
१३ वीं शताब्दी में वायडगन्छीय जिनदत्तसूरिरचित 'विवेकविलास' के . कई श्लोकों से इस रचना के पद्य साम्य रखते हैं । यह ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ है। हस्तसंजीवन (सिद्धज्ञान): ___'हस्तसंजीवन' अपर नाम 'सिद्धज्ञान' ग्रन्थ के कर्ता उपाध्याय मेघविजयगणि हैं। इन्होंने वि० सं० १७३५ में ५१९ पद्यों में संस्कृत में इस ग्रन्थ की रचना की है । अष्टांग निमित्त को घटाने के उद्देश्य से समस्त ग्रन्थ को १. दर्शन, २. स्पर्शन, ३. रेखाविमर्शन और ४. विशेष-इन चार अधिकारों में विभक्त किया है। अधिकारों के पद्यों की संख्या क्रमशः १७७, ५४,२४१ और
__ प्रारम्भ में शंखेश्वर पार्श्वनाथ आदि को नमस्कार करके हस्त की प्रशंसा हस्तशानदर्शन, स्पर्शन और रेखाविमर्शन-इन तीन प्रकारों में बताई है। हाथ की रेखाओं का ब्रह्मा द्वारा बनाई हुई अक्षय जन्मपत्री के रूप में उल्लेख किया गया है। हाथ में ३ तीर्थ और २४ तीर्थकर हैं। पाँच अंगुलियों के नाम, गुरु को हाथ बताने की विधि और प्रसंगवश गुरु के लक्षण आदि बताये गये हैं।
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