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________________ सामुद्रिक २१५ विजयद्वार नामक है जिसमें जय-पराजयसंबंधी कथन है । बाईसवें अध्याय में उत्तम फलों की सूची दी गई है । पच्चीसवें अध्याय में गोत्रों का विस्तृत उल्लेख है। छब्बीसवें अध्याय में नामों का वर्णन है । सत्ताईसवें अध्याय में राजा, मन्त्री, नायक, गण्डागारिक, आसनस्थ, महानसिक, गजाध्यक्ष आदि राजकीय अधिकारियों के पदों की सूची है। अहाईसवें अध्याय में उद्योगी लोगों की महत्त्वपूर्ण सूची है। उनतीसवां अध्याय नगरविजय नाम का है, इसमें प्राचीन भारतीय नगरों के संबंध में बहुत-सी बातों का वर्णन है। तीसवें अध्याय में आभूषणों का वर्णन है । बत्तीसवें अध्याय में धान्य के नाम हैं। तैंतीसवें अध्याय में वाहनों के नाम दिये गये हैं। छत्तीसवें अध्याय में दोहदसंबंधी विचार है। सैतीसवें अध्याय में १२ प्रकार के लक्षणों का प्रतिपादन किया गया है । चालीसवें अध्याय में भोजनविषयक वर्णन है। इकतालीसवें अध्याय में मूर्तियां, उनके प्रकार, आभूषण और अनेक प्रकार की क्रीडाओं का वर्णन है। तैंतालीसवें अध्याय में यात्रासंबंधी वर्णन है। छियालीसवें अध्याय में गृहप्रवेशसम्बन्धी शुभ-अशुभफलों का वर्णन है। सैंतालीसवें अध्याय में राजाओं की सैन्ययात्रा-संबंधी शुभाशुभफलों का वर्णन है। चौवनवें अध्याय में सार और असार वस्तुओं का विचार है । पचपनवें अध्याय में जमीन में गड़ी हुई धनराशि की खोज करने के संबंध में विचार है। अट्ठावनवे अध्याय में जैनधर्म में निर्दिष्ट जीव और अजीव का विस्तार से वर्णन किया गया है । साठवें अध्याय में पूर्वभव जानने की तरकीब सुझाई गई है। करलक्खण ( करलक्षण ): 'करलक्खण' प्राकृत भाषा में रचा हुआ सामुद्रिक शास्त्रविषयक अज्ञातकर्तृक ग्रन्थ है । आद्य पद्य में भगवान् महावीर को नमस्कार किया गया है। इसमें ६१ गाथाएँ हैं। इस कृति का दूसरा नाम 'सामुद्रिकशास्त्र' है। __ इस ग्रन्थ में हस्तरेखाओं का महत्त्व बताते हुए पुरुषों के लक्षण, पुरुषों का दाहिना और स्त्रियों का बायां हाथ देखकर भविष्य-कथन आदि विषयों का वर्णन किया गया है । विद्या, कुल, धन, रूप और आयु-सूचक पांच रेखाएँ होती हैं । हस्त रेखाओं से भाई-बहन, संतानों की संख्या का भी पता चलता है। कुछ रेखाएँ धन और व्रत-सूचक भी होती हैं। ६०वीं गाथा में वाचनाचार्य, उपा , यह ग्रंथ मुनि श्री पुण्यविजयजी द्वारा संपादित होकर प्राकृत टेक्स्ट सोसा___ यटी, वाराणसी से सन् १९५७ में प्रकाशित हुमा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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