________________
२१२
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास चन्द्रोन्मीलन :
'चन्द्रोन्मीलन' चूडामणि-विषयक ग्रंथ है। इसके कर्ता कौन थे और इसकी रचना कब हुई, यह ज्ञात नहीं हुआ है।
इस ग्रंथ में ५५ अधिकार हैं जिनमें मूलमंत्रार्थसंबंध, वर्णवर्गपञ्च, स्वराक्षरानयन, प्रश्नोत्तर, अष्टक्षिप्रसमुद्धार, जीवित-मरण, जय-पराजय, धनागमना. गमन, जीव-धातु मूल, देवभेद, स्वरभेद, मनुष्ययोनि, पक्षिभेद, नारकभेद, चतुष्पदभेद, अपदभेद, कीटयोनि, घटितलोहभेद, धाम्याधम्ययोनि, मूलयोनि, चिन्तालूकाश्चतुर्भद, नामाक्षर-स्वरवर्णप्रमाणसंख्या, स्वरसंख्या, अक्षरसंख्या, गणचक्र, अभिघातप्रश्ने सिंहावलोकितचक्र, धूमितप्रश्ने अश्वावलोकितचक्र, दग्धप्रश्ने मंडूकलुप्तचक्र, वर्गानयन, अक्षरानयन, महाशास्त्रार्थविवशप्रकरण, शल्योद्धारनभश्चक्र, तस्करागमनप्रकरण, कालज्ञान, गमनागमन, गर्भागर्भप्रकरण, मैथुनाध्याय, भोजनाध्याय, छत्रभंग, राष्ट्रनिर्णय, कोटभंग, सुभिक्षवर्णन प्रावृटकालजलदागम, कूपजलोद्देशप्रकरण, आरामप्रकरण, गृहप्रकरण, गुह्यज्ञानप्रकरण, पत्रलेखनज्ञान, पारधिप्रकरण, संधिशुद्धप्रकरण, विवाहप्रकरण, नष्ट-जातकप्रकरण, सफल निष्फलविचार, मित्रभावप्रकरण, अन्ययोनिप्रकरण, ज्ञातनिर्णय, शिक्षाप्रकरण आदि का विचार किया गया है। केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि :
'केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि' नामक शास्त्र के रचयिता आचार्य समन्तभद्र माने जाते हैं। इस ग्रंथ के संपादक और अनुवादक पं० नेमिचन्द्रजी ने बताया है कि ये समंतभद्र 'आतमीमांसा' के कर्ता से भिन्न हैं। उन्होंने इनके 'अष्टांगआयुर्वेद' और 'प्रतिष्ठातिलक' के कर्ता नेमिचन्द्र के भाई विजयप के पुत्र होने की संभावना की है। ___ अक्षरों के वर्गीकरण से इस ग्रंथ का प्रारंभ होता है। इसमें कार्य की सिद्धि, लामालाभ, चुराई हुई वस्तु की प्राप्ति, प्रवासी का आगमन, रोगनिवारण, जयपराजय आदि का विचार किया गया है। नष्ट जन्मपत्र बनाने की विधि भी इसमें बताई गई है। कहीं-कहीं तद्विषयक प्राकृत ग्रंथों के उद्धरण भी मिलते हैं।
१. इस ग्रंथ की प्रति अहमदाबाद के ला० द० भारतीय संस्कृति विगामंदिर
२. यह ग्रंथ भारतीय ज्ञानपीठ, काशी से सन् १९५० में प्रकाशित हुआ है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org