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चूडामणि अक्षरचूडामणिशास्त्र : ___ 'अक्षरचूडामणिशास्त्र' नामक ग्रन्थ का निर्माण किसने किया, यह ज्ञात नहीं है परंतु यह ग्रन्थ किसी जैनाचार्य का रचा हुआ है, यह ग्रन्थ के अंतरंग-निरीक्षण से स्पष्ट होता है। यह श्वेतांबराचार्यकृत है या दिगंबराचार्यकृत, यह कहा नहीं जा सकता । इस ग्रन्थ में ३० पत्र हैं। भाषा संस्कृत है और कहीं-कहीं पर प्राकृत पद्य भी दिये गये हैं। ग्रंथ पूरा पद्य में होने पर भी कहीं-कहीं कर्ता ने गद्य में भी लिखा है। ग्रन्थ का प्रारंभ इस प्रकार है :
नमामि पूर्णचिद्रूपं नित्योदितमनावृतम् । सर्वाकारा च भाषिण्याः सक्तालिङ्गितमीश्वरम् ।। ज्ञानदीपकमालायाः वृत्तिं कृत्वा सदक्षरैः ।
स्वरस्नेहेन संयोज्यं ज्वालयेदुत्तराधरैः ।। इसमें द्वारगाथा इस प्रकार है :
अथातः संप्रवक्ष्यामि उत्तराधरमुत्तमम् ।
येन विज्ञातमात्रेण त्रैलोक्यं दृश्यते स्फुटम् ।। इस ग्रन्थ में उत्तराधरप्रकरण, लाभालाभप्रकरण, सुख-दुःखप्रकरण, जीवितमरणप्रकरण, जयचक्र, जयाजयप्रकरण, दिनसंख्याप्रकरण, दिनवक्तव्यताप्रकरण, चिन्ताप्रकरण ( मनुष्ययोनिप्रकरण, चतुष्पदयोनिप्रकरण, जीवयोनिप्रकरण, धाम्यधातुप्रकरण, धातुयोनिप्रकरण), नामबन्धप्रकरण, अकडमविवरण, स्थापना, सर्वतोभद्रचक्रविवरण, कचादिवर्णाक्षरलक्षण, अहिवलये द्रव्यशल्याधिकार, इदाचक्र, पञ्चचक्रव्याख्या, वर्गचक्र, अर्घकाण्ड, जलयोग, नवोत्तर, जीव-धातु-मूलाक्षर, आलिंगितादिक्रम आदि विषयों का विवेचन है। ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हुआ है।
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