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तेरहवां प्रकरण
चूडामणि
अर्हच्चूडामणिसार:
'अर्हच्चूडामणिसार' का दूसरा नाम है 'चूडामणिसार' या 'ज्ञानदीपक' ।' इसमें कुल मिलाकर ७४ गाथाएँ हैं। इसके कर्ता भद्रबाहुस्वामी के होने का निर्देश किया गया है।
इस पर संस्कृत में एक छोटी-सी टीका भी है। चूडामणि :
'चूडामणि' नामक ग्रन्थ आज अनुपलब्ध है। गुणचन्द्रगणि ने 'कहारयणकोस' में चूडामणिशास्त्र का उल्लेख किया है। इसके आधार पर तीनों कालों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता था।
'सुपासनाहचरिय' में चंपकमाला के अधिकार में इस ग्रंथ की महिमा बतायी गई है। चंपकमाला 'चूडामणिशास्त्र' की विदुषी थी। उसका पति कौन होगा और उसे कितनी संतानें होंगी, यह सब वह जानती थी।
इस ग्रन्थ के आधार पर भद्रलक्षण ने 'चूडामणिसार' नामक ग्रंथ की रचना की है और पावचन्द्र मुनि ने भी इसी ग्रन्थ के आधार पर अपने 'हस्तकाण्ड' की रचना की है।
कहा जाता है कि द्रविड देश में दुर्विनीत नामक राजा ने पांचवीं सदी में ९६००० श्लोक-प्रमाण 'चूडामणि' नामक ग्रंथ गद्य में रचा था।
१. यह ग्रंथ सिंघी सिरीज में प्रकाशित 'जयपाहुई' के परिशिष्ट के रूप में
छपा है। २. देखिए-लक्ष्मणगणिरचित सुपासनाहचरिय, प्रस्ताव २, सम्यक्स्वप्रशंसा
कथानक ।
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