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बारहवां प्रकरण
स्वप्न
सुविणदार ( स्वप्नद्वार):
प्राकृत भाषा की ६ पत्रों की 'सुविणदार' नाम की कृति पाटन के जैन भंडार में है। उसमें कर्ता का नाम नहीं है परंतु अंत में 'पंचनमोक्कारमंतसरणाओ' ऐसा उल्लेख होने से इसके जैनाचार्य की कृति होने का निर्णय होता है। इसमें स्वप्नों के शुभाशुभ फलों का विचार किया गया है। स्वप्नशास्त्र
'स्वप्नशास्त्र' के कर्ता जैन गृहस्थ विद्वान् मंत्री दुर्लभराज के पुत्र थे। दुर्लभराज और उनका पुत्र दोनों गुर्जरेश्वर कुमारपाल के मंत्री थे ।'
यह ग्रन्थ दो अध्यायों में विभक्त है । प्रथम अधिकार में १५२ श्लोक शुभ स्वप्नों के विषय में हैं और दूसरे अधिकार में १५९ श्लोक अशुभ स्वप्नों के बारे में हैं। कुल मिलाकर ३११ श्लोकों में स्वप्नविषयक चर्चा की गई है। सुमिणसत्तरिया ( स्वप्नसप्ततिका):
किसी अज्ञात विद्वान् ने 'सुमिणसत्तरिया' नामक कृति प्राकृत भाषा में ७० गाथाओं में रची है। यह ग्रन्थ अप्रकाशित है। सुमिणसत्तरिया-वृत्ति __'सुमिणसत्तरिया' पर खरतरगच्छीय सर्वदेवसूरिने वि० सं० १२८७ में जैसलमेर में वृत्ति की रचना की है और उसमें स्वप्न-विषयक विशद विवेचन किया है । यह टीका-ग्रंथ भी अप्रकाशित है । सुमिणवियार (स्वप्नविचार):
'सुमिणवियार' नामक ग्रन्थ जिनपालगणि ने प्राकृत में ८७५ गाथाओं में रचा है। यह ग्रन्थ अप्रकाशित है।
१. श्रीमान् दुर्लभराजस्तदपत्यं बुद्धिधामसुकवि भूत् । यं कुमारपालो महत्तमं क्षितिपतिः कृतवान् ॥ १४
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