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श्वानशकुनाध्याय :
संस्कृत भाषा में रची हुई २२ पद्यों की 'श्वानशकुनाध्याय' नामक कृति ५ पत्रों में है।' इसमें कर्ता का निर्देश नहीं है । इस ग्रंथ में कुत्ते की हलन चलन और चेष्टाओं के आधार पर घर से निकलते हुए मनुष्य को प्राप्त होने वाले शुभाशुभ फलों का निर्देश किया गया है ।
नाडीविज्ञान :
'नाडीविज्ञान' नामक संस्कृत भाषा की ८ पत्रों की कृति ७८ पद्यों में है । 'नत्वा वीरं' ऐसा उल्लेख होने से प्रतीत होता है कि यह कृति किसी जैनाचार्य द्वारा रची गई है। इसमें देहस्थित नाडियों की गतिविधि के आधार पर शुभाशुभ फलों का विचार किया गया है ।
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
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१. यह प्रति पाटन के जैन भंडार में है ।
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