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________________ निमित्त की विधियों का वर्णन किया है। इसमें ब्रह्मयामल आदि सात यामलों का उल्लेख तथा उपयोग किया गया है । विषय का मर्म ८४ चक्रों के निदर्शन द्वारा । सुस्पष्ट कर दिया गया है। तांत्रिकों में प्रचलित मारण, मोहन, उच्चाटन आदि षटकर्मों तथा मंत्रों का भी इसमें उल्लेख किया गया है।' नरपतिजयचर्या-टीका : - हरिवंश नामक किसी जैनेतर विद्वान् ने 'नरपतिजयचर्या' पर संस्कृत में टोका रची है। कहीं-कहीं हिंदी भाषा और हिंदी पयों के अवतरण भी दिये हैं । यह टीका आधुनिक है। शायद ४०-५० वर्ष पहले लिखी गई होगी। हस्तकांड : 'हस्तकांड' नामक ग्रंथ की रचना आचार्य चन्द्रसूरि के शिष्य पार्श्वचन्द्र ने १०० पद्यों में की है। प्रारंभ में वर्धमान जिनेश्वर को नमस्कार करके उत्तर और अधर-संबंधी परिभाषा बताई है। इसके बाद लाभ-हानि, सुख-दुःख, जीवित-मरण, भूभंग ( जमीन और छत्र का पतन ), मनोगत विचार, वर्णी का धर्म, संन्यासी वगैरह का धर्म, दिशा, दिवस आदि का काल-निर्णय, अर्घकांड, गर्भस्थ संतान का निर्णय, गमनागमन, वृष्टि और शल्योद्धार आदि विषयों की चर्चा है । यह ग्रंथ अनेक ग्रंथों के आधार से रचा गया है।' मेघमाला: हेमप्रभसूरि ने 'मेघमाला' नामक ग्रंथ वि० सं० १३०५ के आस-पास में रचा है । इसमें दशगर्भ का बलविशोधक, जलमान, वातस्वरूप, विद्युत् आदि विषयों पर विवेचन है । कुल मिलाकर १९९ पद्य हैं। ग्रंथ के अंत में कर्ता ने लिखा है : देवेन्द्रसूरिशिष्यैस्तु श्रीहेमप्रभसूरिभिः। मेघमालाभिधं चक्रे त्रिभुवनस्य दीपकम् ।। यह ग्रंथ छपा नहीं है। 1. यह ग्रंथ वेंकटेश्वर प्रेस, बंबई से प्रकाशित हुआ है। २. श्रीचन्द्राचार्य शिष्येण पार्श्वचन्द्रेण धीमता। उद्धृत्यानेकशास्त्राणि हस्तकाण्ड विनिर्मितम् ॥१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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