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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास 'इच्चकहा' (भव ६, पत्र ५२१ ) में चंडरुद्र का कथानक आता है । वह 'परदिहिमोहिणी' नामक चोरगुटिका को पानी में घिस कर आंखों में आजता था, जिससे लक्ष्मी अदृश्य हो जाती थी । २०६ आर्य समितसूरि ने योगचूर्ण से नदी के प्रवाह को रोककर ब्रह्मद्वीप के पांच सौ तापसों को प्रतिबोध दिया था । ऐसे जो अंजन, पादलेप और गुटिका -के दृष्टांत मिलते हैं वह 'सिद्धपाहुड' में निर्दिष्ट बातों का प्रभाव था । . प्रश्नप्रकाश : 'प्रभावकचरित' (शृंग ५, श्लो० ३४७ ) के कथनानुसार ' प्रश्नप्रकाश' नामक ग्रंथ के कर्ता पादलिप्तसूरि थे । आगमों की चूर्णियों को देखने से मालूम होता है कि पादलिप्तसूरि ने 'कालज्ञान' नामक ग्रंथ की रचना की थी । आचार्य पादलिप्तसूरि ने 'गाहाजुअलेण' से शुरू होनेवाले 'वीरथय' की रचना की है और उसमें सुवर्णसिद्धि तथा व्योमसिद्धि ( आकाशगामिनी विद्या ) - का विवरण गुप्त रीति से दिया है । यह स्तव प्रकाशित है । पादलिप्तसूरि संगमसिंह के शिष्य वाचनाचार्य मंडनगणि के शिष्य थे । -स्कंदिलाचार्य के वे गुरु थे । 'कल्पचूर्णि' में इन्हें वाचक बताया गया है । हरिभद्रसूरि ने 'आवस्यणिज्जुत्ति' (गा. ९४४ ) की टीका में वैनयिकी बुद्धि का उदाहरण देते हुए पादलिप्तसूरि का उल्लेख किया है । केवली ( वर्गकेवली ) : वाराणसी - निवासी वासुकि नामक एक जैन श्रावक 'वग्गकेवली' नामक ग्रंथ लेकर याकिनीधर्मसूनु आचार्य हरिभद्रसूरि के पास आया था । ग्रंथ को लेकर आचार्यश्री ने उस पर टीका लिखी थी। बाद में ऐसे रहस्यमय ग्रंथ का दुरुपयोग होने की संभावना से आचार्यश्री ने वह टीका ग्रंथ नष्ट कर दिया, 'ऐसा उल्लेख 'कहावली' में है । नरपतिजयचर्या : ' नरपतिजयचर्या' के कर्ता धारानिवासी आम्रदेव के पति हैं। इन्होंने वि० सं० १२३२ में जब अणहिल्लपुर में था तब यह कृति आशापल्ली में बनाई । कर्ता ने इस ग्रंथ में मातृका आदि स्वरों के आधार पर शकुन देखने की और विशेषतः मांत्रिक यंत्रों द्वारा युद्ध में विजय प्राप्त करने के हेतु शकुन देखने Jain Education International पुत्र जैन गृहस्थ नरअजयपाल का शासन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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