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निमित्त
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स्थान की ओर जाती हैं, यह देखकर भविष्य में होनेवाली शुभाशुभ घटनाओं का वर्णन किया गया है ।
प्रणष्टलाभादि :
'प्रणष्टलाभादि' नामक प्राकृत भाषा में रची हुई ५ पत्रों की प्रति पाटन के जैन ग्रंथ-भंडार में है। मंगलाचरण में 'सिद्धे, जिणे' आदि शब्दों का प्रयोग होने से इस कृति के जैनाचार्यरचित होने का लाभ, बंध-मुक्ति और रोगविषयक चर्चा है । किया गया है।
निर्णय होता है। इसमें गतवस्तुजीवन और मरणसंबंधी विचार भी
नाडीवियार ( नाडीविचार ) :
किसी अज्ञात विद्वान् द्वारा प्राकृत भाषा में रची हुई 'नाडीविचार' नामक कृति पाटन के जैन भंडार में है । इसमें किस कार्य में दाय या बायीं नाडी शुभ किंवा अशुभ है, इसका विचार किया गया है।
मेघमाला :
अज्ञात ग्रंथकार द्वारा प्राकृत भाषा में रची हुई ३२ गाथाओं की 'मेघमाला' नाम की कृति पाटन के जैन ग्रंथ-भंडार में है । इसमें नक्षत्रों के आधार पर वर्षा के चिह्नों और उनके आधार पर शुभ-अशुभ फलों की चर्चा है ।
छींक विचार :
।
'छींकविचार' नामक कृति प्राकृत भाषा में है नहीं है। इसमें छींक के शुभ-अशुभ फलों के बारे में पाटन के भंडार में है ।
लेखक का नाम निर्दिष्ट वर्णन है । इसकी प्रति
प्रियंकर नृपकथा ( पृ० ६-७ ) में किसी प्राकृत ग्रंथ का अवतरण देते हुए प्रत्येक दिशा और विदिशा में छींक का फल बताया गया है । सिद्धपाहुड (सिद्धप्राभृत ) :
जिस ग्रंथ में अञ्जन, पादलेप, गुटिका आदि का वर्णन था वह 'सिद्धपाहुड' ग्रंथ आज अप्राप्य है ।
पादलिप्तसूरि और नागार्जुन पादलेप करके आकाशमार्ग से विचरण करते थे । आर्य सुस्थितसूरि के दो क्षुल्लक शिष्य आंखों में अंजन लगाकर अदृश्य होकर दुष्काल में चंद्रगुप्त राजा के साथ में बैठकर भोजन करते थे । 'समरा-
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