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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास सिद्धादेश:
'सिद्धादेश' नामक कृति संस्कृत भाषा में ६ पत्रों में है। इसकी प्रति पाटन के भंडार में है। इसके कर्ता का नाम ज्ञात नहीं है। इसमें वृष्टि, वायु और बिजली के शुभाशुभ विषयों का विचार किया गया है । उवस्सुइदार ( उपश्रुतिद्वार):
'उवस्सुइदार' नामक ३ पत्रों की प्राकृत भाषा की कृति पाटन के जैन ग्रंथ-भंडार में है। कर्ता का नाम निर्दिष्ट नहीं है। इसमें सुने गये शब्दों के आधार पर शुभाशुभ फलों का निर्णय किया गया है। छायादार (छायाद्वार):
किसी अज्ञातनामा विद्वान् द्वारा प्राकृत भाषा में रची हुई 'छायादार' नामक २ पत्रों की १२३ गाथात्मक कृति अभी तक प्रकाशित नहीं हुई है। प्रति पाटन के जैन भंडार में है। इसमें छाया के आधार पर शुभ-अशुभ फलों का विचार किया गया है। नाडीदार (नाडीद्वार): ___ किसी अज्ञातनामा विद्वान् द्वारा रची हुई 'नाडीदार' नामक प्राकृत भाषा की ४ पत्रों की कृति पाटन के जैन भंडार में विद्यमान है। इसमें इडा, पिंगला
और सुषुम्ना नाम की नाडियों के बारे में विचार किया गया है । निमित्तदार (निमित्तद्वार):
_ 'निमित्तदार' नामक प्राकृत भाषा की ४ पत्रों की कृति किसी अज्ञातनामा विद्वान् ने रची है। प्रति पाटन के ग्रंथ-भंडार में है। इसमें निमित्तविषयक विवरण है। रिट्ठदार (रिष्टद्वार):
'रिहदार' नामक प्राकृत भाषा की ७ पत्रों की कृति किसी अज्ञात विद्वान् द्वारा रची गई है। प्रति पाटन के भंडार में है। इसमें भविष्य में होनेवाली घटनाओं का-जीवन-मरण के फलादेश का निर्देश किया गया है। पिपीलियानाण (पिपीलिकाज्ञान):
किसी जैनाचार्य द्वारा रची हुई 'पिपीलियानाण' नाम की प्राकृतभाषा की ४ पत्रों की कृति पाटन के जैन भंडार में है । इसमें किस रंग की चीटियां किस
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