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निमित्त
२." _ 'धवला-टीका' में उल्लेख है कि 'योनिप्राभूत' में मंत्र-तंत्र की शक्ति का वर्णन है और उसके द्वारा पुद्गलानुभाग जाना जा सकता है । आगमिक व्याख्याओं के उल्लेखानुसार आचार्य सिद्धसेन ने 'जोणिपाहुड' के आधार से अश्व बनाये थे। इसके बल से महिषों को अचेतन किया जा सकता था और धन पैदा किया जा सकता था। 'विशेषावश्यक-भाष्य' (गाथा १७७५) की मलधारी हेमचन्द्रसूरिकृत टीका में अनेक विजातीय द्रव्यों के संयोग से सर्प, सिंह आदि प्राणी और मणि,. सुवर्ण आदि अचेतन पदार्थ पैदा करने का उल्लेख मिलता है। कुवलयमालाकार के कथनानुसार 'जोणिपाहड' में कही गई बात कभी असत्य नहीं होती। जिनेश्वरसूरि ने अपने 'कथाकोशप्रकरण' के सुन्दरीदत्तकथानक में इस शास्त्र का उल्लेख किया है।' 'प्रभावकचरित' (५,११५-१२७) में इस ग्रन्थ के बल से मछली और सिंह बनाने का निर्देश है | कुलमण्डनसूरि द्वारा वि० सं० १४७३ में रचित 'विचारामृतसंग्रह' (पृ. ९) में 'योनिप्राभृत' को पूर्वश्रुत से चला आता हुआ स्वीकार किया गया है। 'योनिप्राभूत' में इस प्रकार उल्लेख है:
अग्गेणिपुत्वनिग्गयपाहुडसत्थस्स मज्झयारम्मि । किंचि उद्देसदेसं धरसेणो वज्जियं भगइ ।। गिरिउजिंतठिएण पच्छिमदेसे सुरगिरिनयरे । बुइंतं पद्धरियं दूसमकालप्पयावम्मि ।
-प्रथम खण्ड अट्ठावीससहस्सा गाहाणं जत्थ वनिया सत्थे । अग्गेणिपुव्वमझे संखेवं वित्थरे मुत्तु।।
-चतुर्थ खण्ड इस कथन से ज्ञात होता है कि अप्रायणीय पूर्व का कुछ अंश लेकर धरसेनाचार्य ने इस ग्रंथ का उद्धार किया। इसमें पहले अठाईस हजार गाथाएँ थीं, उन्हींको संक्षिप्त करके 'योनिप्राभृत' में रखा है ।
१. जिणभासियपुष्वगए जोणीपाहुडसुए समुद्दिटुं । ___एयंपि संबकज्जे कायध्वं धीरपुरिसेहिं ॥ २. देखिये-हीरालाल र० कापडिया : भागमोनुं दिग्दर्शन, पृ० २३३-२३५. ३. इस मप्रकाशित ग्रंथ की हस्तलिखित प्रति भांडारकर इंस्टीट्यूट, पूना में
मौजूद है।
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