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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इन्द्रधनुष द्वारा शुभ-अशुभ का ज्ञान, गन्धर्वनगर का फल, विद्युल्लतायोग और मेघयोग का वर्णन है । 'बृहत्संहिता' की भट्टोत्पली टीका में इस आचार्य का अवतरण दिया है । निमित्तपाहुड : 'निमित्त पाहुड' शास्त्र द्वारा केवली, ज्योतिष और स्वप्न आदि निमित्तों का ज्ञान प्राप्त किया जाता था । आचार्य भद्रेश्वर ने अपनी 'कहावली' में और शीलांकसूरि ने अपनी 'सूत्रकृताङ्ग - टीका' में 'निमित्त पाहुड' का उल्लेख किया है ।" जोणिपाहुड : २०० 'जोणिपाहुड' (योनिप्राभृत ) निमित्तशास्त्र का अति महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है । दिगंबर आचार्य धरसेन ने इसकी प्राकृत में रचना की है । वे प्रज्ञाश्रमण नाम से भी विख्यात थे । वि० सं० १५५६ में लिखी गई 'बृहट्टिप्पणिका' नामक ग्रंथसूची के अनुसार वीर- निर्वाण के ६०० वर्ष पश्चात् धरसेनाचार्य ने इस ग्रंथ की रचना की थी । कूष्मांडी देवी द्वारा उपदिष्ट इस पद्यात्मक कृति की रचना आचार्य धरसेन ने अपने शिष्य पुष्पदंत और भूतबलि के लिये की। इसके विधान से ज्वर, भूत, शाकिनी आदि दूर किये जा सकते हैं। यह समस्त निमित्तशास्त्र का उद्गमरूप है । समस्त विद्याओं और धातुवाद के विधान का मूलभूत कारण है । आयुर्वेद का साररूप है । इस कृति को जाननेवाला कलिकालसर्वज्ञ और चतुर्वर्ग का अधि ष्ठाता बन सकता है । बुद्धिशाली लोग इसे सुनते हैं तब मंत्र-तंत्रवादी मिथ्यादृष्टियों का तेज निष्प्रभ हो जाता है । इस प्रकार इस कृति का प्रभाव वर्णित है । इसमें एक जगह कहा गया है कि प्रज्ञाश्रमण मुनि ने 'बालतंत्र' संक्षेप में कहा है । १. देखिए - प्रो० हीरालाल र० कापडिया : पाइय भाषाभो भने साहित्य, पृ० १६७-१६८. २. योनिप्राभृतं वीरात् ६०० धारसेनम् । - बृहद्दिप्पणिका, जैन साहित्य संशोधक १, २ : परिशिष्ट; 'षट्खंडागम' की प्रस्तावना, भा० १, पृ० ३०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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