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ग्यारहवां प्रकरण
निमित्त
जयपाहुड ___ 'जयपाहुड' निमित्तशास्त्र का ग्रंथ है । इसके कतो का नाम अज्ञात है। इसे जिनभाषित कहा गया है । यह ईसा की १० वीं शताब्दी के पूर्व की रचना है। प्राकृत में रचा हुआ यह ग्रंथ अतीत, अनागत आदि से सम्बन्धित नष्ट, मुष्टि, चिंता, विकल्प आदि अतिशयों का बोध कराता है। इससे लाभ-अलाभ का ज्ञान प्राप्त होता है। इसमें ३७८ गाथाएँ हैं जिनमें संकट-विकटप्रकरण, उत्तराधरप्रकरण, अभिघात, जीवसमास, मनुष्यप्रकरण, पक्षिप्रकरण, चतुष्पद, धातुप्रकृति, धातुयोनि, मूलभेद, मुष्टिविभागप्रकरण-वर्ण, गंध-रसस्पैशंप्रकरण, नष्टिकाचक्र, चिंताभेदप्रकरण, तथा लेखगंडिकाधिकार में संख्याप्रमाण, कालप्रकरण, लाभगंडिका, नक्षत्रगंडिका, स्ववर्गसंयोगकरण, परवगसंयोगकरण, सिंहावलो .करण, गजविलुलित, गुणाकारप्रकरण, अस्त्रविभागप्रकरण आदि से सम्बन्धित विवेचन है। निमित्तशास्त्र : ___ इस 'निमित्तशास्त्र' नामक ग्रन्थ के कर्ता हैं ऋषिपुत्र । ये गर्ग नामक आचार्य के पुत्र थे। गर्ग स्वयं ज्योतिष के प्रकांड पंडित थे। पिता ने पुत्र को ज्योतिष का ज्ञान विरासत में दिया। इसके सिवाय ग्रंथकर्ता के संबंध में और कुछ पता नहीं लगता । ये कब हुए, यह भी ज्ञात नहीं है।
इस ग्रन्थ में १८७ गाथाएँ हैं जिनमें निमित्त के भेद, आकाश-प्रकरण, चंद्र-प्रकरण, उत्पात-प्रकरण, वर्षा-उत्पात, देव-उत्पातयोग, राज-उत्पातयोग,
१. यह ग्रन्थ चूडामणिसार-सटीक के साथ सिंघी जैन ग्रंथमाला, बंबई से
प्रकाशित हुआ है। २. यह पं० लालाराम शास्त्री द्वारा हिंदी में अनूदित होकर वर्धमान पार्श्वनाथ
शास्त्री, सोलापुर से सन् १९४१ में प्रकाशित हुमा है।
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