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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ८. हरिण, ९. भषण, १०. मिश्र और ११. संग्रह-इस प्रकार ११ विषयों का वर्णन है । कर्ता ने अनेक शाकुनविषयक ग्रंथों के आधार पर इस ग्रंथ की रचना की है। यह ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ है। शकुनरत्नावलि-कथाकोश :
आचार्य अभयदेवसूरि के शिष्य वर्धमानसूरि ने 'शकुनरत्नावलि' नामक ग्रंथ की रचना की है। 'शकुनावलि
'शकुनावलि' नाम के कई ग्रंथ हैं। एक 'शकुनावलि' के कर्ता गौतम महर्षि थे, ऐसा उल्लेख मिलता है। दूसरी 'शकुनावलि' के कर्ता आचार्य हेमचन्द्रसूरि माने जाते हैं। तीसरी 'शकुनावलि' किसी अज्ञात विद्वान ने रची है।
तीनों के कर्ताविषयक उल्लेख संदिग्ध हैं। ये प्रकाशित भी नहीं हैं। सउणदार ( शकुनद्वार): __ 'सउणदार' नामक ग्रंथ प्राकृत भाषा में है। यह अपूर्ण है । इसमें कर्ता का नाम नहीं दिया गया है । शकुनविचार:
'शकुनविचार' नामक कृति ३ पत्रों में है। इसकी भाषा अपभ्रंश है। इसमें किसी पशु के दाहिनी या बायीं ओर होकर गुजरने के शुभाशुभ फल के विषय में विचार किया गया है। यह अज्ञातकर्तृक रचना है ।
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१. यह पाटन के भंडार में है। २. इसकी प्रति पाटन के जैन भंडार में है ।
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