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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इस पर पूर्णिमागच्छ के भावरत्न (भावप्रभसूरि ) ने सन् १७१२ में सुबोधिनी वृत्ति रची है । यह अभीतक अप्रकाशित है। महादेवीसारणी टीका:
महादेव नामक विद्वान् ने 'महादेवीसारणी' नामक ग्रहसाधन-विषयक ग्रंथ की शक सं० १२३८ (वि० सं० १३७३ ) में रचना की है । कर्ता ने लिखा है:
चक्रेश्वरारब्धनभश्चराशुसिद्धिं महादेव ऋषींश्च नत्वा । इससे अनुमान होता है कि चक्रेश्वर नामक ज्योतिषी के आरम्भ किये हुए इस अपूर्ण ग्रन्थ को महादेव ने पूर्ण किया। महादेव पद्मनाभ ब्राह्मण के पुत्र थे। वे गोदावरी तट के निकट रासिण गांव के निवासी थे परन्तु उनके पूर्वजों का मूल स्थान गुजरातस्थित सूरत के निकट का प्रदेश था।
इस ग्रंथ में लगभग ४३ पद्य हैं। उनमें केवल मध्यम और स्पष्ट ग्रहों का साधन है । क्षेपक मध्यम-मेषसंक्रांतिकालीन है और अहर्गण द्वारा मध्यम ग्रहसाधन करने के लिये सारणियां बनाई हैं।
इस ग्रंथ पर अंचलगच्छीय मुनि भोजराज के शिष्य मुनि धनराज ने दीपिका-टीका की रचना वि० सं० १६९२ में पद्मावतीपत्तन में की है। टीका में सिरोही का देशान्तर साधन किया है। टीका का प्रमाण १५०० श्लोक है। "जिनरत्नकोश' के अनुसार मुनि भुवनराज ने इस पर टिप्पण लिखा है। मुनि तत्त्वसुन्दर ने इस ग्रंथ पर विवृति रची है। किसी अज्ञात विद्वान् ने भी इस पर टीका लिखी है। विवाहपटल-बालावबोध : ____ अज्ञातकर्तृक 'विवाहपटल' पर नागोरी-तपागच्छीय आचार्य हर्षकीर्तिसूरि ने 'बालावबोध' नाम से टीका रची हैं। ___ आचार्य सोमसुन्दरसूरि के शिष्य अमरमुनि ने 'विवाहपटल' पर 'बोध' नाम से टीका रची है। ___मुनि विद्याहेम ने वि० सं० १८७३ में 'विवाहपटल' पर 'अर्थ' नाम से टीका रची है। १. इस टीका की प्रति का० द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद के
संग्रह में है।
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