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ज्योतिष
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हरिभट्ट नामक विद्वान् ने 'ताजिकसार' नामक ग्रन्थ की रचना वि० सं० १५८० के आसपास में की है । हरिभट्ट को हरिभद्र नाम से भी पहिचाना जाता है । इस ग्रन्थ पर अंचलगच्छीय मुनि सुमतिहर्ष ने वि० सं० १६७७ में विष्णुदास राजा के राज्यकाल में टीका लिखी है । '
करणकुतूहल- टीका :
ज्योतिर्गणितज्ञ भास्कराचार्य ने 'करणकुतूहल' की रचना वि० सं० १२४० के आसपास में की है । उनका यह ग्रंथ करण विषयक है । इसमें मध्यमग्रहसाधन अहर्गण द्वारा किया गया है । ग्रन्थ में निम्नोक्त दस अधिकार हैं : १. मध्यम, २. स्पष्ट, ३. त्रिप्रश्न, ४. चन्द्र ग्रहण, ५. सूर्य ग्रहण, ६. उदयास्त, ७. श्रृंगोन्नति, ८. ग्रहयुति, ९. पात और १०. ग्रहणसंभव । कुल मिलाकर १३९ पद्म हैं । इस पर सोढल, नार्मदात्मज पद्मनाभ, शङ्कर कवि आदि की टीकाएँ हैं ।
इस 'करणकुतूहल' पर 'अंचलगच्छीय हर्षरत्न मुनि के शिष्य सुमतिहर्ष मुनि ने वि० सं० १६७८ में हेमाद्रि के राज्य में 'गणककुमुदकौमुदी' नामक टीका रची है । इसमें उन्होंने लिखा है :
करणकुतूहलवृत्तावेतस्यां सुमतिहर्षरचितायाम् । गणककुमुदकौमुद्यां विवृता स्फुटता हि खेटानाम् ॥
इस टीका का ग्रन्थाय १८५० श्लोक है । '
ज्योतिर्विदाभरण- टीका :
'ज्योतिर्विदाभरण' नामक ज्योतिषशास्त्र का ग्रंथ 'रघुवंश' आदि काव्यों के कर्ता कवि कालिदास की रचना है, ऐसा ग्रन्थ में लिखा है परन्तु यह कथन ठीक नहीं है। इसमें ऐन्द्रयोग का तृतीय अंश व्यतीत होने पर सूर्य-चन्द्रमा का क्रांतिसाम्य बताया गया है, इससे इसका रचनाकाल शक-सं० १९६४ ( वि० सं० १२९९ ) निश्चित होता है । अतः रघुवंशादि काव्यों के निर्माता कालिदास इस ग्रन्थ के कर्ता नहीं हो सकते। ये कोई दूसरे ही कालिदास होने चाहिये । एक विद्वान् ने तो यह 'ज्योतिर्विदाभरण' ग्रंथ १६ वीं शताब्दी का होने का निर्णय किया है । यह ग्रंथ मुहूर्तविषयक है ।
१. यह टीका- ग्रंथ मूल के साथ वेंकटेश्वर प्रेस, बंबई से प्रकाशित हुमा है 1 लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद के संग्रह में इसकी २९ पत्रों की प्रति है ।
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