SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९२ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इस पर खरतरगच्छीय मुनि भक्तिलाभ ने वि० सं० १५७१ में विक्रमपुर में टीका की रचना की है तथा मतिसागर मुनि ने वि० सं० १६०२ में भाषा में वचनिका और उपकेशगच्छीय खुशालसुन्दर मुनि ने वि० सं० १८३९ में स्तबक लिखा है। मुनि मतिसागर ने इस ग्रन्थ पर वि० सं० १६०५ में वार्तिक रचा है। लघुश्यामसुन्दर ने भी 'लघुजातक' पर टीका लिखी है । जातकपद्धति-टीका : श्रीपति ने 'जातकपद्धति' की रचना करीब वि० सं० ११०० में की है। इस पर अंचलगच्छीय हर्षरत्न के शिष्य मुनि सुमतिहर्ष ने वि० सं० १६७३ में पद्मावतीपत्तन में 'दीपिका' नामक टीका की रचना की है। आचार्य जिनेश्वरसूरि ने भी इस ग्रंथ पर टीका लिखी है। सुमतिहर्ष ने 'बृहत्पर्वमाला' नामक ज्योतिष-ग्रन्थ की भी रचना की है। इन्होंने ताजिकसार, करणकुतूहल और होरामकरन्द नामक ग्रंथों पर भी टीकाएँ रची हैं। ताजिकसार-टीका: ___ 'ताजिक' शब्द की व्याख्या करते हुए किसी विद्वान् ने इस प्रकार बताया है : यवनाचार्येण पारसीकभाषया ज्योतिषशास्त्रैकदेशरूपं वार्षिकादिनानाविधफलादेशफलकशास्त्रं ताजिकशब्दवाच्यम् । इसका अभिप्राय यह है कि जिस समय मनुष्य के जन्मकालीन सूर्य के समान सूर्य होता है अर्थात् जब उसकी आयु का कोई भी सौर वर्ष समाप्त होकर दूसरा सौर वर्ष लगता है उस समय के लग्न और ग्रह-स्थिति द्वारा मनुष्य को उस वर्ष में होनेवाले सुख-दुःख का निर्णय जिस पद्धति द्वारा किया जाता है उसे 'ताजिक' कहते हैं। ___उपर्युक्त व्याख्या से यह भी भलीभांति मालूम हो जाता है कि यह ताजिकशाखा मुसलमानों से आई है। शक-सं० १२०० के बाद इस देश में मुसलमानी राज्य होने पर हमारे यहाँ ताजिक-शाखा का प्रचलन हुआ। इसका अर्थ केवल इतना ही है कि वर्ष-प्रवेशकालीन लग्न द्वारा फलादेश कहने की कल्पना और कुछ पारिभाषिक नाम यवनों से लिये गये । जन्मकुंडली और उसके फल के नियम ताजिक में प्रायः जातकसदृश हैं और वे हमारे ही हैं यानी इस भारत देश के ही हैं। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy