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________________ ज्योतिष यह ग्रन्थ सात प्रकरणों में विभक्त है : १. तिथिद्वार, २. वार, ३. तिथिघटिका, ४. नक्षत्रसाधन, ५. नक्षत्रघटिका, ६. इस प्रकरण का पत्रांक ४४ नष्ट होने से स्पष्ट नहीं है, ७. इस प्रकरण के अन्त में 'इति चतुर्दश, पंचदश, ...सप्तदश, रूपैश्चतुर्भिरैिः संपूर्णोऽयं ज्योतिप्रकाशः।' ऐसा उल्लेख है। ___ सात प्रकरण पूर्ण होने के पश्चात् ग्रन्थ की समाप्ति का सूचन है परन्तु प्रशस्ति के कुछ पद्य अपूर्ण रह जाते हैं । .. ग्रन्थ में 'चन्द्रप्रज्ञप्ति', 'ज्योतिष्करण्डक' की मलयगिरि-टीका आदि के उल्लेख के साथ एक जगह विनयविजय के 'लोकप्रकाश' का भी उल्लेख है। अतः इसकी रचना वि० सं० १७३० के बाद ही सिद्ध होती है । ज्ञानभूषण का उल्लेख प्रत्येक प्रकाश के अन्त में पाया जाता है और अकबर का भी उल्लेख कई बार हुआ है । खेटचूला: ___ आचार्य ज्ञानभूषण ने 'खेटचूल' नामक ग्रंथ की रचना की, ऐसा उल्लेख उनके स्वरचित ग्रन्थ 'ज्योतिप्रकाश' में है । पष्टिसंवत्सरफल : दिगंबराचार्य दुर्गदेवरचित 'षष्टिसंवत्सरफल' नामक संस्कृत ग्रंथ की ६ पत्रों की प्रति में संवत्सरों के फल का निर्देश है। लघुजातक-टीकाः 'पञ्चसिद्धान्तिका' ग्रन्थ की शक-सं० ४२७ (वि० सं० ५६२ ) में रचना करनेवाले वराहमिहिर ने 'लघुजातक' की रचना की है। यह होराशाखा के 'बृहज्जातक' का संक्षिप्त रूप है। ग्रन्थ में लिखा है : होराशास्त्रं वृत्तैर्मया निबद्धं निरीक्ष्य शास्त्राणि । यत्तस्याप्यार्याभिः सारमहं संप्रवक्ष्यामि ।। १. द्वितीय प्रकाश में वि० सं० १७२५, १७३०, १७३५, १७४०, १७४५, १७५०, १७५५ के भी उल्लेख हैं। इसके अनुसार वि. सं. १७५५ के बाद में इसकी रचना सम्भव है। २. यह प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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