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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसमें दो प्रकरण हैं। इस ग्रन्थं की हस्तलिखित प्रति बम्बई के माणकचन्द्रजी भण्डार में है।
मुनि हीरकलश ने राजस्थानी भाषा में ज्योतिषहीर' या 'हीरकलश' ग्रंथ की रचना ९०० दोहों में की है, जो श्री साराभाई नवाब ( अहमदाबाद ) ने प्रकाशित किया है। इस ग्रंथ में जो विषय निरूपित है वही इस प्राकृत ग्रंथ में भी निबद्ध है। ___ मुनि हीरकलश की अन्य कृतियाँ इस प्रकार हैं :
१. अठारा-नाता-सज्झाय, २. कुमति-विध्वंस-चौपाई, ३. मुनिपति-चौपाई, ४. सोल-स्वप्न-सज्झाय, ५. आराधना-चौपाई, ६. सम्यक्त्व-चौपाई, ७. जम्बूचौपाई, ८. मोती-कपासिया-संवाद, ९. सिंहासन-बत्तीसी, १०. रत्नचूड-चौपाई, ११. जीभ-दाँत-संवाद, १२. हियाल, १३. पंचाख्यान, १४. पंचसती-द्रुपदीचौपाई, १५. हियाली।
ये सब कृतियाँ जूनी गुजराती अथवा राजस्थानी में हैं। पञ्चांगतत्त्व:
'पञ्चांगतत्त्व' के कर्ता का नाम और उसका रचना-समय अज्ञात है। इसमें पञ्चांग के तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण-इन विषयों का निरूपण है । यह ग्रंथ अप्रकाशित है। पंचांगतत्त्व-टीका:
_ 'पंचांगतत्त्व' पर अभयदेवसूरि नामक किसी आचार्य ने ९००० श्लोकप्रमाण टीका रची है । यह टीका भी अप्रकाशित है । पंचांगतिथिविवरण :
_ 'पंचांगतिथिविवरण' नामक ग्रंथ अज्ञातकर्तृक है तथा इसका रचना-समय भी अज्ञात है। यह ग्रंथ 'करणशेखर' या 'करणशेष' नाम से भी प्रसिद्ध है। इसमें पंचांग बनाने की रीति समझाई गई है । ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ है । इस पर किसी जैन मुनि ने वृत्ति भी रची है, ऐसा जानने में आया है । पंचांगदीपिका :
'पंचांगदीपिका' नामक ग्रंथ की भी किसी जैन मुनि ने रचना की है । इसमें पंचांग बनाने की विधि बताई गई है। ग्रंथ का रचना-समय अज्ञात है । ग्रंथ अप्रकाशित है।
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