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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ग्रन्थ में रचना-समय का उल्लेख नहीं है परन्तु आचार्य विजयरत्नसूरि के शासनकाल में इसकी रचना होने से वि० सं० १७३२ के पूर्व तो यह नहीं लिखा गया होगा। इसमें अनेक ग्रन्थों और ग्रन्थकारों के उल्लेख तथा अवतरण दिये गये हैं । कहीं-कहीं गुजराती पद्य भी हैं।'
उस्तरलावयंत्र:
मुनि मेघरत्न ने 'उस्तरलायंत्र' की रचना वि० सं० १५५० के आस-पास में की है । ये वडगच्छीय विनयसुन्दर मुनि के शिष्य थे।
यह कृति ३८ श्लोकों में है। अक्षांश और रेखांश का ज्ञान प्राप्त करने के लिये इस यंत्र का उपयोग होता है तथा नतांश और उन्नतांश का वेध करने में इसकी सहायता ली जाती है। इससे काल का परिज्ञान भी होता है। यह कृति खगोलशास्त्रियों के लिये उपयोगी विशिष्ट यन्त्र पर प्रकाश डालती है।'
उस्तरलावयन्त्र-टीका:
इस लघु कृति पर संस्कृत में टीका है। शायद मुनि मेघरन ने ही वोपश टीका लिखी हो। दोषरत्नावली:
जयरत्नगणि ने ज्योतिषविषयक प्रश्नलग्न पर 'दोषरत्नावली' नामक ग्रन्थ की रचना की है। जयरत्नगणि पूर्णिमापक्ष के आचार्य भावरत्न के शिष्य थे।
१. यह ग्रन्थ पं० भगवानदास जैन, जयपुर, द्वारा 'मेघमहोदय-वर्षप्रबोध' नाम
से हिन्दी अनुवादसहित सन् १९१६ में प्रकाशित किया गया था। 'श्री पोपटलाल साकरचन्द, भावनगर, ने यह ग्रन्थ गुजराती अनुवादसहित छपवाया है। उन्हीं ने इसकी दूसरी भावृत्ति भी छपवाई है। इसका परिचय Encyclopaedia Britanica, Vol. II, pp. 574.575 में दिया है। इसकी हस्तलिखित प्रति बीकानेर के अनुप संस्कृत पुस्तकालय में है, जो वि० सं० १६०० में लिखी गई है। यह ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हुभा है परंतु इसका परिचय श्री भगरचन्दजी नाहटा ने 'यस्तरलाव-यन्त्रसम्बन्धी एक महत्त्वपूर्ण जैन ग्रन्थ' शीर्षक से 'जैन सत्यप्रकाश' में छपवाया है।
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