________________
ज्योतिष
उन्होंने त्र्यंबावती (खम्भात ) में इस ग्रन्थ की रचना की थी ।' 'ज्वरपराजय' नामक वैद्यक ग्रन्थ की रचना इन्होंने वि० सं० १६६२ में की है । उसी के आसपास में इस कृति की भी रचना की होगी । यह ग्रंथ अप्रकाशित है ।
जातकदीपिका पद्धति :
कर्ता ने इस ग्रन्थ की रचना कई प्राचीन ग्रन्थकारों की कृतियों के आधार पर की है । इसमें वारस्पष्टीकरण, ध्रुवादिनयन, भौमादीर वीजध्रुवकरण, लग्नस्पष्टीकरण, होराकरण, नवमांश, दशमांश, अन्तर्दशा, फलदशा आदि विषय प में हैं । कुल ९४ श्लोक हैं । इस ग्रन्थ के कर्ता का नाम और रचना - समय अज्ञात है ।
जन्मप्रदीपशास्त्र :
'जन्मप्रदीपशास्त्र' के कर्ता कौन हैं और ग्रन्थ कब रचा गया यह अज्ञात है । इसमें कुण्डली के १२ भुवनों के लग्नेश के बारे में चर्चा की गई है । ग्रन्थ पद्य म है ।
१८१
केवलज्ञानहोरा :
दिगम्बर जैनाचार्य चन्द्रसेन ने ३-४ हजार श्लोक - प्रमाण 'केवलज्ञानहोरा' नामक ग्रन्थ की रचना की है। आचार्य ने ग्रन्थ के आरम्भ में कहा है :
१. श्रीमद्गुर्जर देश भूषण मणित्र्यंबावलीनामके,
श्रीपूर्ण नगरे बभूव सुगुरुः श्रीभावरत्नाभिधः । तच्छिष्य जयरत्न इत्यभिधया यः पूर्णिमागच्छवाँस्तेनेयं क्रियते जनोपकृतये श्रीज्ञानरत्नावली ॥
इति प्रश्न लग्नोपरि दोषरत्नावली सम्पूर्णा — पिटर्सन : अलवर महाराजा लायब्रेरी केटलॉग |
अहमदाबाद के ला० द० भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर में वि० सं० १८४७ में लिखी गई इसकी १२ पत्रों की प्रति है ।
३. पुराविदैर्यदुक्तानि
पद्यान्यादाय शोभनम् ।
संमील्य सोमयोग्यानि लेखयि (खि) ध्यामि शिशोः मुद्दे ॥
४. इसकी ५ पत्रों की हस्तलिखित प्रति अहमदाबाद के ला० द० भारतीय
संस्कृति विद्यामन्दिर में है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org