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ज्योतिष
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शीघ्रं सफला कार्यसिद्धिर्भविष्यति, अस्मिन् व्यवहारे मध्यम फलं दृश्यते, ग्रामान्तरे फलं नास्ति, कष्टमस्ति, भन्यं स्थानसौख्यं भविष्यति, अल्पा मेघवृष्टिः संभाग्यते।
उपर्युक्त २४ प्रश्नों के १४४ उत्तर संस्कृत में हैं तथा प्रश्न कैसे निकालना, उसका फलाफल कैसे जानना-ये बातें उस समय की गुजराती भाषा में दी गई हैं।
' अंत में पं० श्रीनयविजयगणिशिष्यगणिजसविजयलिखितम्' ऐसा लिखा है।' उदयदीपिका: __उपाध्याय मेघविजयजी ने वि० सं० १७५२ में 'उदयदीपिका' नामक ग्रंथ की रचना मदनसिंह श्रावक के लिये की थी। इसमें ज्योतिष संबंधी प्रश्नों और उनके उत्तरों का वर्णन है। यह ग्रंथ अप्रकाशित है। प्रश्नसुन्दरी: ___ उपाध्याय मेघविजयजी ने वि० सं० १७५५ २. 'प्रश्नसुन्दरी' नामक ग्रंथ की रचना की है। इसमें प्रश्न निकालने की पद्धति का वर्णन किया गया है । यह ग्रंथ अप्रकाशित है। वर्षप्रबोध: ___उपाध्याय मेघविजयजी ने 'वर्षप्रबोध' अपर नाम 'मेघमहोदय' नामक ग्रन्थ की रचना की है। ग्रन्थ संस्कृत भाषा में है। कई अवतरण प्राकृत ग्रंथों के भी हैं । इस ग्रंथ का संबंध 'स्थानांग' के साथ बताया गया है। समस्त ग्रन्थ तेरह अधिकारों में विभक्त है जिनमें निम्नांकित विषयों की चर्चा की गई है :
१. उत्पात, २. कपूरचक्र, ३. पद्मिनीचक्र, ४. मण्डलप्रकरण, ५. सूर्य-चन्द्रग्रहण के फल तथा प्रतिमास के वायु का विचार, ६. वर्षा बरसाने और बन्द करने के मन्त्र-यन्त्र, ७. साठ संवत्सरों का फल, ८. राशियों पर ग्रहों के उदय और अस्त के वक्री का फल, ९. अयन-मास-पञ्च और दिन का विचार, १०. संक्रांतिफल, ११. वर्ष के राजा और मन्त्री आदि, १२. वर्षों का गर्भ, १३. विश्वाआयव्यय-सर्वतोभद्रचक्र और वर्षा बतानेवाले शकुन ।
1. यह कृति 'जैन संशोधक' त्रैमासिक पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है।
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