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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास लग्नविचार : कासहृद्गच्छीय उपाध्याय नरचन्द्र ने 'लग्नविचार' नामक ग्रन्थ की रचना करीब वि० सं० १३२५ में की है। ज्योतिषप्रकाश कासहृद्गच्छीय नरचन्द्र मुनि ने 'ज्योतिषप्रकाश' नामक ग्रंथ की रचना करीब वि० सं० १३२५ में की है। फलित ज्योतिष के मुहूर्त और संहिता का यह सुंदर ग्रंथ है । इसके दूसरे विभाग में जन्मकुण्डली के फलों का अत्यन्त सरलता से विचार किया गया है । फलित ज्योतिष का आवश्यक ज्ञान इस ग्रंथ द्वारा प्राप्त हो सकता है। चतुर्विशिकोद्धार : कासहृद्गच्छीय नरचन्द्र उपाध्याय ने 'चतुर्विशिकोद्धार' नामक ज्योतिषग्रंथ की रचना करीब वि० सं० १३२५ में की है। प्रथम श्लोक में ही कर्ता ने ग्रंथ का उद्देश्य इस प्रकार बताया है : श्रीवीराय जिनेशाय नत्वाऽतिशयशालिने । प्रश्नलग्नप्रकारोऽयं संक्षेपात् क्रियते मया । इस ग्रन्थ में प्रश्न-लग्न का प्रकार संक्षेप में बताया गया है। ग्रन्थ में मात्र १७ श्लोक हैं, जिनमें होराद्यानयन, सर्वलग्नग्रहबल, प्रश्नयोग, पतितादिज्ञान. जयाजयपृच्छा, रोगपृच्छा आदि विषयों की चर्चा है। ग्रन्थ के प्रारंभ में ही ज्योतिष-संबंधी महत्त्वपूर्ण गणित बताया है। यह ग्रंथ अत्यन्त गूढ और रहस्य पूर्ण है । निम्न श्लोक में कर्ता ने अत्यन्त कुशलता से दिनमान सिद्ध करने की रीति बताई है: पचवेदयामगुण्ये रविभुक्तदिनान्विते । त्रिंशद्भुक्ते स्थितं यत् तत् लग्नं सूर्योदयक्षतः॥ यह ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ है। १. इसकी १ पत्र की प्रति महमदाबाद के ला० द. भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर में है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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