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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
मण्डलप्रकरण :
आचार्य विजयसेनसूरि के शिष्य मुनि विनयकुशल ने प्राकृत भाषा में ९९ गाथाओं में 'मण्डलप्रकरण' नामक ग्रन्थ की रचना वि० सं० १६५२ में की है ।
ग्रन्थकार ने स्वयं निर्देश किया है कि आचार्य मुनिचन्द्रसूरि ने 'मण्डल कुलक' रचा है, उसको आधारभूत मानकर 'जीवाजीवाभिगम' की कई गाथाएँ लेकर इस प्रकरण की रचना की गई है । यह कोई नवीन रचना नहीं है ।
ज्योतिष के खगोल-विषयक विचार इसमें प्रदर्शित किये गए हैं। यह ग्रन्थ प्रकाशित नहीं है ।
मण्डलप्रकरण- टीका :
' मण्डलप्रकरण' पर मूल प्राकृत ग्रन्थ के रचयिता विनयकुशल ने ही स्वोपज्ञ टीका करीब वि. सं. १६५२ में लिखी है, जो १२३१ ग्रन्थाग्र- प्रमाण है । यह टीका छपी नहीं है । '
भद्रबाहुसंहिता :
आज जो संस्कृत में 'भद्रबाहुसंहिता' नाम का ग्रन्थ मिलता है वह तो आचार्य भद्रबाहु द्वारा प्राकृत में रचित ग्रन्थ के उद्धार के रूप में है, ऐसा विद्वानों का मन्तव्य है । वस्तुतः भद्रबाहुरचित ग्रन्थ प्राकृत में था जिसका उद्धरण उपाध्याय मेघविजयजी द्वारा रचित 'वर्ष- प्रबोध' ग्रंथ ( पृ० ४२६-२७ ) में मिलता है । यह ग्रंथ प्राप्त न होने से इसके विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता ।
इस नाम का जो ग्रन्थ संस्कृत में रचा हुआ प्रकाश में आया है उसमें २७ प्रकरण इस प्रकार हैं : १. ग्रंथांगसंचय, २-३. उल्कालक्षण, ४. परिवेषवर्णन, ५. विद्युल्लक्षण, ६. अग्रलक्षण, ७. संध्यालक्षण, ८. मेघकांड, ९ वातलक्षण, १०. सकलमारसमुच्चयवर्षण, ११. गन्धर्वनगर, १२. गर्भवात लक्षण, १३. राजयात्राध्याय, १४. सकलशुभाशुभव्याख्यान विधानकथन, १५. भगवत्त्रिलोकपति दैत्यगुरु, १६. शनैश्चरचार, १७. बृहस्पतिचार, १८. बुधचार, १९. अंगारकचार, २०-२१. राहुचार, २२. आदित्यचार, २३. चन्द्रचार, २४. ग्रहयुद्ध, २५. संग्रहयोगार्धकाण्ड, २६. स्वप्नाध्याय, २७. वस्त्रव्यवहारनिमित्तक,. परिशिष्टाध्याय - वस्त्रविच्छेदनाध्याय ।
१. इसकी प्रति ला० द० भा० संस्कृति विद्यामंदिर, अहमदाबाद में है । २. हिन्दी भाषानुवादसहित - भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, सन् १९५९
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