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________________ ज्योतिष बाद और वराहमिहिर के पहले कहीं है। भट्टोत्पली टीका में ऋषिपुत्र के संबंध में उल्लेख है। इससे वे शक सं० ८८८ (वि० सं० १०२३ ) के पूर्व हुए यह निर्विवाद है। आरम्भसिद्धि: नागेन्द्रगच्छीय आचार्य विजयसेनसूरि के शिष्य उदयप्रभसूरि ने 'आरम्भसिद्धि' (पंचविमर्श) ग्रंथ की रचना (वि० सं० १२८०) संस्कृत में ४१३ पद्यों, में की है। इस ग्रंथ में पांच विमर्श हैं और ११ द्वारों में इस प्रकार विषय हैं : १. तिथि, २. वार, ३. नक्षत्र, ४. सिद्धि आदि योग, ५. राशि, ६. गोचर, ७. (विद्यारंभ आदि ) कार्य, ८. गमन-यात्रा, ९. (गृह आदि का) वास्तु, १०.. विलग्न और ११. मिश्र। इसमें प्रत्येक कार्य के शुभ-अशुभ मुहूर्तों का वर्णन है। मुहूर्त के लिये 'मुहूर्त्तचिंतामणि' ग्रंथ के समान ही यह ग्रंथ उपयोगी और महत्त्वपूर्ण है। ग्रंथः का अध्ययन करने पर कर्ता की गणित-विषयक योग्यता का भी पता लगता है। ___इस ग्रंथ के कर्ता आचार्य उदयप्रभसूरि मलिषेणसूरि और जिनभद्रसूरि के गुरु थे। उदयप्रभसूरि ने धर्माम्युदयमहाकाव्य, नेमिनाथचरित्र, सुकृतकीर्तिकल्लोलिनीकाव्य एवं वि० सं० १२९९ में 'उवएसमाला' पर 'कर्णिका' नाम से टीकाग्रंथ की रचना की है। 'छासीइ' और 'कम्मत्थय' पर टिप्पण आदि ग्रंथ रचे हैं। गिरनार के वि० सं० १२८८ के शिलालेखों में से एक. शिलालेख की रचना इन्होंने की है। आरम्भसिद्धि-वृत्ति: ___ आचार्य रत्नशेखरसूरि के शिष्य हेमहंसगणि ने वि० सं० १५१४ में 'आरम्भसिद्धि' पर 'सुधीशृङ्गार' नाम से वार्तिक रचा है। टीकाकार ने मुहूर्त्त-संबंधी साहित्य का सुन्दर संकलन किया है। टीका में बीच-बीच में ग्रहगणित-विषयक. प्राकृत गाथाएँ उदधृत की हैं जिससे मालूम पड़ता है कि प्राकृत में ग्रहगणितः का कोई ग्रंथ था। उसके नाम का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। १. यह हेमहंसकृत वृत्तिसहित जैन शासन प्रेस, भावनगर से प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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