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गणित
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आचार्य वीरसेन ने 'षटखण्डागम' ( कर्मप्राभृत) के पाँच खंडों की व्याख्या 'धवला' नाम से शक सं० ७३८ (वि० सं० ८७३ ) में की है। इस व्याख्या से प्रतीत होता है कि वीरसेनाचार्य अच्छे गणितज्ञ थे। इन्होंने 'कसायपाहुड' पर 'जयधवला' नामक टीका की रचना करना प्रारम्भ किया था परन्तु २०००० श्लोक-प्रमाण टीका लिखने के बाद उनका स्वर्गवास हो गया।
'सिद्ध-भू-पद्धति' पर भी इन्होंने टीका की रचना की जिससे यह ग्रन्थ समझना सरल हो गया। क्षेत्रगणित :
'क्षेत्रगणित' के कर्ता नेमिचन्द्र हैं, ऐसा उल्लेख 'जिनरत्नकोश' पृ० ९८ में है।
इष्टाङ्कपश्चविंशतिका :
लोकागच्छीय मुनि तेजसिंह ने 'इष्टाङ्कपञ्चविंशतिका' ग्रन्थ रचा है। इसमें कुल २६ पद्य हैं। यह ग्रन्थ गणितविषयक है।' गणितसूत्र:
'गणितसूत्र' के कर्ता का नाम अज्ञात है, परंतु इतना निश्चित है कि इस ग्रन्थ की रचना किसी दिगंबर जैनाचार्य ने की है। गणितसार-टीका:
श्रीधरकृत 'गणितसार' ग्रन्थ पर उपकेशगच्छीय सिद्धसूरि ने टीका रची है। इसका उल्लेख श्री अगरचंदजी नाहटा ने अपने 'जैनेतर ग्रन्थों पर जैन विद्वानों की टीकाएँ' शीर्षक लेख में किया है। गणिततिलक-वृत्ति
श्रीपतिकृत 'गणिततिलक' पर आचार्य विबुधचंद्र के शिष्य सिंहतिलकसूरि ने
१. इसकी ३ पत्रों की प्रति अहमदाबाद के ला० द. भारतीय संस्कृति विद्या
मंदिर के संग्रह में है। २. इसकी हस्तलिखित प्रति भारा के जैन सिद्धांत भवन में है।
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