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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास इसमें यन्त्र-प्रकरण में अंकसूचक शब्दों का प्रयोग किया गया है ।
ठक्कर फेरु ठक्कर चन्द्र के पुत्र थे। ये देहली में टंकशाला के अध्यक्ष पद पर नियुक्त थे। इन्होंने यह ग्रन्थ वि० सं० १३७२ से १३८० के बीच में रचा होगा। यह ग्रन्थ अभी प्रकाशित नहीं हुआ है।
ठक्कर फेरु ने अन्य कई ग्रन्थों की रचना की है जो इस प्रकार हैं :
१. वास्तुसार, २. ज्योतिस्सार, ३. रत्नपरीक्षा, ४. द्रव्यपरीक्षा (मुद्राशास्त्र), ५. भूगर्भप्रकाश, ६. धातूत्पत्ति, ७. युगप्रधान चौपाई । पाटीगणित:
'पाटीगणित' के कर्ता पल्लीवाल अनन्तपाल जैन गृहस्थ थे। इन्होंने 'नेमिचरित' नामक महाकाव्य की रचना की है। अनन्तपाल के भाई धनपाल ने वि० सं० १२६१ में 'तिलकमञ्जरीकथासार' रचा था।
इस 'पाटीगणित' में अंकगणितविषयक चर्चा की होगी, ऐसा अनुमान है। गणिवसंग्रह
'गणितसंग्रह' नामक ग्रन्थ के रचयिता यल्लाचार्य थे। ये जैन थे। यल्लाचार्य प्राचीन लेखक हैं, परन्तु ये कब हुए यह कहना मुश्किल है। सिद्ध-भू-पद्धतिः
'सिद्ध-भू-पद्धति' किसने कब रचा, यह निश्चित नहीं है । इसके टीकाकार वीरसेन ९ वीं शताब्दी में विद्यमान थे। इससे सिद्ध-भू-पद्धति उनसे पहले रची गई थी यह निश्चित है। ___'उत्तरपुराण' की प्रशस्ति में गुणभद्र ने अपने दादागुरु वीरसेनाचार्य के विषय में उल्लेख किया है कि 'सिद्ध-भू-पद्धति' का प्रत्येक पद विषम था। इस पर वीरसेनाचार्य के टीका-निर्माण करने से यह मुनियों को समझने में सुगम हो गया। ___ इसमें क्षेत्रगणित का विषय होगा, ऐसा अनुमान है । सिद्ध-भू-पद्धति-टीका:
'सिद्ध-भू-पद्धति-टीका' के कर्ता वीरसेनाचार्य हैं। ये आर्यनन्दि के शिष्य, जिनसेनाचार्य प्रथम के गुरु तथा 'उत्तरपुराण' के रचयिता गुणभद्राचार्य के प्रगुरु थे । इनका जन्म शक सं० ६६० (वि० सं० ७९५ ) और स्वर्गवास शक सं० ७४५ (वि० सं० ८८०) में हुआ।
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