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गणित
इस ग्रंथ की दो हस्तलिखित प्रतियों के, जिनमें से एक ४५ पत्रों की और दूसरी १८ पत्रों की है, 'राजस्थान के जैन शास्त्र-भंडारों की ग्रंथसूची' में जयपुर के ठोलियों के मंदिर के भंडार में होने का उल्लेख है । गणितसारकौमुदी
जैन गृहस्थ विद्वान् ठक्कर फेरु ने 'गणितसारकौमुदी' नामक ग्रंथ की रचना • पद्य में प्राकृत भाषा में की है। इसमें उन्होंने अपने अन्य ग्रंथों की तरह पूर्ववर्ती साहित्यकारों के नामों का उल्लेख नहीं किया है ।
ठक्कर फेरु ने अपनी इस रचना में भास्कराचार्य की 'लीलावती' का पर्याप्त सहारा लिया है। दोनों ग्रंथों में साम्य भी बहुत अंशों में देखा जाता है। जैसेपरिभाषा, श्रेढीव्यवहार, क्षेत्रव्यवहार, मिश्रव्यवहार, खात्तव्यवहार, चितिव्यवहार, राशिव्यवहार, छायाव्यवहार—यह विषयविभाग जैसा 'लीलावती' में है वैसा ही इसमें भी है। स्पष्ट है कि ठक्कर फेर ने अपने 'गणितसारकौमुदी' ग्रन्थ की रचना में 'लीलावती' को ही आदर्श रखा है। कहीं-कहीं तो 'लीलावती' के पद्यों को ही अनूदित कर दिया है।
जिन विषयों का उल्लेख 'लीलावती' में नहीं है ऐसे देशाधिकार, वस्त्राधि. कार, तात्कालिक भूमिकर, धान्योत्पत्ति आदि इतिहास और विज्ञान की दृष्टि से अति मूल्यवान् प्रकरण इसमें हैं। इनसे ठक्कर फेरु की मौलिक विचारधारा का परिचय भी प्राप्त होता है। ये प्रकरण छोटे होते हुए भी अति महत्त्व के हैं। इन विषयों पर उस समय के किसी अन्य विद्वान् ने प्रकाश नहीं डाला। अलाउद्दीन
और कुतुबुद्दीन बादशाहों के समय की सांस्कृतिक और सामाजिक स्थिति का ज्ञान इन्हीं के सूक्ष्मतम अध्ययन पर निर्भर है ।
इस ग्रंथ के क्षेत्रव्यवहार-प्रकरण में नामों को स्पष्ट करने के लिये यंत्र दिये गये हैं। अन्य विषयों को भी सुगम बनाने के लिये अनेक यंत्रों का आलेखन किया गया है । ठक्कर फेर के यंत्र कहीं-कहीं 'लीलावती' के यंत्रों से मेल नहीं खाते।
ठक्कर फेरु ने अपनी ग्रंथ-रचना में महावीराचार्य के 'गणितसारसंग्रह' का भी उपयोग किया है।
गणितसारकौमुदी' में लोकभाषा के शब्दों का भी बहुतायत में प्रयोग किया गया है, जो भाषाविज्ञान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
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