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________________ १६२ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास राशि के वर्गमूल का कथन होता है और, दूसरे वे जिनमें अज्ञात राशि के वर्ग का निर्देश रहता है। ___'गणितसारसंग्रह' में चौबीस अंक तक की संख्याओं का निर्देश किया गया है, जिनके नाम इस प्रकार हैं: १. एक, २. दश, ३. शत, ४. सहस्र, ५. दशसहस्र, ६. लक्ष, ७. दशलक्ष, ८. कोटि, ९. दशकोटि, १०. शतकोटि, ११. अर्बुद, १२. न्यर्बुद, १३. खर्व, १४. महाखर्व, १५. पद्म, १६. महापद्म, १७. क्षोणी, १८. महाक्षोणी, १९. शंख, २०. महाशंख, २१. चिति, २२. महाक्षिति, २३. क्षोभ, २४. महाक्षोभ । __ अंकों के लिये शब्दों का भी प्रयोग किया गया है, जैसे-३ के लिये रत्न, ६ के लिये द्रव्य, ७ के लिये तत्त्व, पन्नग और भय, ८ के लिये कर्म, तनु, मद और ९ के लिये पदार्थ इत्यादि । महावीराचार्य ब्रह्मगुप्तकृत 'ब्राह्मस्फुटसिद्धांत' ग्रंथ से परिचित थे। श्रीधर की 'त्रिशतिका' का भी इन्होंने उपयोग किया था ऐसा मालूम होता है। ये राष्ट्रकूट वंश के शासक अमोघवर्ष नृपतुंग ( सन् ८१४ से ८७८ ) के समकालीन थे। इन्होंने 'गणितसारसंग्रह' की उत्थानिका में उनकी खूब प्रशंसा की है। इस कृति में जिनेश्वर की पूजा, फलपूजा, दीपपूजा, गंधपूजा, धूपपूजा इत्यादिविषयक उदाहरणों और बारह प्रकार के तप तथा बारह अंगों-द्वादशांगी का उल्लेख होने से महावीराचार्य निःसन्देह जैनाचार्य थे ऐसा निर्णय होता है। गणितसारसंग्रह-टीका : दक्षिण भारत में महावीराचार्यरचित 'गणितसार-संग्रह' सर्वमान्य ग्रंथ रहा है। इस ग्रंथ पर वरदराज और अन्य किसी विद्वान् ने संस्कृत में टीकाएँ लिखी हैं । ११ वीं शताब्दी में पावुलूरिमल्ल ने इसका तेलुगु भाषा में अनुवाद किया है। वल्लभ नामक विद्वान् ने कन्नड़ में तथा अन्य किसी विद्वान् ने तेलुगु में व्याख्या की है। षट्त्रिंशिका : ___ महावीराचार्य ने 'षट्त्रिंशिका' ग्रंथ की भी रचना की है। इसमें उन्होंने बीजगणित की चर्चा की है। १. यह ग्रंथ मद्रास सरकार की अनुमति से प्रो. रंगाचार्य ने अंग्रेजी टिप्पणियों के साथ संपादित कर सन् १९१२ में प्रकाशित किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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