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________________ आठवां प्रकरण गणित गणित विषय बहुत व्यापक है। इसकी कई शाखाएँ हैं : अंकगणित, बीजगणित, समतलभूमिति, धनभूमिति, समतलत्रिकोणमिति, गोलीयत्रिकोणमिति, समतलबीजभूमिति, घनबीजभूमिति, शून्यलब्धि (सूक्ष्मकलन), शून्ययुति (समाकलन ) और शून्यसमीकरण । इनके अतिरिक्त स्थितिशास्त्र, गतिशास्त्र, उदकस्थितिशास्त्र, खगोलशास्त्र आदि भी गणित-शास्त्र के अन्तर्गत हैं।। महावीराचार्य ने गणितशास्त्र की विशेषता और व्यापकता बताते हुए कहा है कि लौकिक, वैदिक तथा सामयिक जो भी व्यापार हैं उन सब में गणित-संख्यान का उपयोग रहता है। कामशास्त्र, अर्थशास्त्र, गांधर्वशास्त्र, नाट्यशास्त्र, पाकशास्त्र, आयुर्वेद, वास्तुविद्या और छन्द, अलंकार, काव्य, तर्क, व्याकरण, ज्योतिष आदि में तथा कलाओं के समस्त गुणों में गणित अत्यन्त उपयोगी शास्त्र है । सूर्य आदि ग्रहों की गति ज्ञात करने में, प्रसन अर्थात् दिक् , देश और काल का ज्ञान करने में, चन्द्रमा के परिलेख में सर्वत्र गणित ही अंगीकृत है। द्वीपों, समुद्रों और पर्वतों की संख्या, व्यास और परिधि, लोक, अन्तर्लोक ज्योतिर्लोक, स्वर्ग और नरक में स्थित श्रेणीबद्ध भवनों, सभाभवनों और गुंबदाकार मंदिरों के परिमाण तथा अन्य विविध परिमाण गणित की सहायता से ही जाने जा सकते हैं। जैन शास्त्रों में चार अनुयोग गिनाए गए हैं, उनमें गणितानुयोग भी एक है। कर्मसिद्धांत के भेद-प्रभेद, काल और क्षेत्र के परिमाण आदि समझने में गणित के ज्ञान की विशेष आवश्यकता होती है। गणित जैसे सूक्ष्म शास्त्र के विषय में अन्य शास्त्रों की अपेक्षा कम पुस्तके प्राप्त होती हैं, उनमें भी जैन विद्वानों के ग्रन्थ बहुत कम संख्या में मिलते हैं। गणितसारसंग्रह : 'गणितसारसंग्रह' के रचयिता महावीराचार्य दिगम्बर जैन विद्वान् थे। इन्होंने ग्रन्थ के आरंभ में कहा है कि जगत् के पूज्य तीर्थंकरों के शिष्य-प्रशिष्यों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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