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नाव्य
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कहीं भिन्न मत का निरूपण किया है। इस दृष्टि से यह कृति विशेष तौर से अध्ययन करने योग्य है।
प्रबन्धशत :
आचार्य हेमचन्द्रसूरि के शिष्यरत्न आचार्य रामचन्द्रसूरि ने 'नाट्यदर्पण' के अतिरिक्त नाट्यशास्त्रविषयक 'प्रबन्धशत' नामक ग्रंथ की भी रचना की थी, जो अनुपलब्ध है।
बहुत से विद्वान् 'प्रबन्धशत' का अर्थ 'सौ प्रबन्ध' करते हैं किन्तु प्राचीन ग्रन्थसूची में 'रामचन्द्रकृतं प्रबन्धशत द्वादशरूपकनाटकादिस्वरूपज्ञापकम्' ऐसा उल्लेख मिलता है। इससे ज्ञात होता है कि 'प्रबन्धशत' नाम की इनकी कोई नाट्यविषयक रचना थी।
१. 'नाट्यदर्पण' स्त्रोपज्ञ विवृति के साथ गायकवाड मोरियण्टल सिरीज से
दो भागों में छप चुका है। इस ग्रन्थ का के. एच. त्रिवेदीकृत मालोचनात्मक अध्ययन लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, महमदाबाद से प्रकाशित हुमा है।
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