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छन्द
कविदर्पण-वृत्ति :
'विदर्पण' पर किसी विद्वान् ने वृत्ति की रचना की है, जिसका नाम भी अज्ञात है । वृत्ति में 'छन्दः कन्दली' नामक प्राकृत छन्दोग्रन्थ के लक्षण दिये गये हैं । वृत्ति में जो ५७ उदाहरण हैं वे अन्यकर्तृक हैं। इसमें सूर, पिंगल और त्रिलोचनदास - इन विद्वानों की संस्कृत और स्वयंभू, पादलिप्तसूरि और मनोरथ - इन विद्वानों की प्राकृत कृतियों से अवतरण दिये गये हैं । रत्नसूरि, सिद्धराज जयसिंह, धर्मसूरि और कुमारपाल के नामों का उल्लेख है । इन नामों को देखते हुए वृत्तिकार भी जैन प्रतीत होते हैं ।
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छन्दःकोश :
'छन्दःकोश' के रचयिता रत्नशेखरसूरि हैं, जो १५ वीं शताब्दी में हुए । ये बृहद्गच्छीय वज्रसेनसूरि ( बाद में रूपांतरित नागपुरीय तपागच्छ के हेमतिलकसूरि ) के शिष्य थे ।
प्राकृत भाषा में रचित इस 'छन्दः कोश" में कुल ७४ पद्य हैं । पद्य - संख्या ५ से ५० तक ( ४६ पद्य ) अपभ्रंश भाषा में रचित हैं । प्राकृत छंदों में से कई प्रसिद्ध छंदों के लक्षण लक्ष्य लक्षणयुक्त और गण- मात्रादिपूर्वक दिये गये हैं । इसमें अल्लु (अर्जुन) और गुल्हु ( गोसल) नामक लक्षणकारों से उद्धरण दिये हैं ।
छन्दः कोश- वृत्ति:
इस 'छन्दः कोश' ग्रंथ पर आचार्य रत्नशेखरसूरि के संतानीय भहारक राजरत्नसूर और उनके शिष्य चन्द्रकीर्तिसूरि ने १७ वीं शताब्दी में वृत्ति की रचना की है।
छन्दः कोश- बालावबोध :
'छन्दः कोश' पर आचार्य मानकीर्ति के शिष्य अमरकीर्तिसूरि ने गुजराती भाषा में 'बालबोध' की रचना की है । '
१. इसका प्रकाशन डा० शुब्रिंग ने (ZDMG, Vol. 75, pp. 97ff . ) सन् १९१२ में किया था । फिर तीन हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर प्रो० ० एच० डी० वेलणकर ने इसे संपादित कर बंबई विश्वविद्यालय पत्रिका में सन् १९३३ में प्रकाशित किया था ।
२. - इसकी एक हस्तलिखित प्रति अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर में है । प्रति १८ वीं शताब्दी में लिखी गई मालूम पड़ती है ।
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