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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
गाथा लक्षण-वृत्ति :
'गाथालक्षण' छंद-ग्रन्थ पर रत्नचन्द्र मुनि ने वृत्ति की रचना की है। टीका के अंत में इस प्रकार उल्लेख है : नंदिताढ्यस्य च्छन्दसष्टीका कृतिः श्री देवाचार्यस्य शिष्येणाष्टोत्तरशतप्रकरण कर्तुर्महाकवेः पण्डितरत्नचन्द्रेणेति ।
माण्डव्यपुरगच्छीयदेवानन्दमुनेर्गिरा
टीकेयं रत्नचन्द्रेण नंदिताढ्यस्य निर्मिता ॥
१०८ प्रकरण-ग्रंथों के रचयिता महाकवि देवानन्दाचार्य, जो मांडव्यपुरगच्छ के थे, उनकी आज्ञा से उन्हीं के शिष्य रत्नचन्द्र ने नन्दिताढ्य के इस गाथा - लक्षण की वृत्ति रची है ।
इस वृत्ति से गाथा लक्षण में प्रयुक्त पद्य किन-किन ग्रंथों से उद्धृत किये ये हैं इस बात का पता लगता है । टीका की रचना विशद है । कविदर्पण :
प्राकृत भाषा में ग्रथित इस महत्त्वपूर्ण छन्दःकृति के कर्ता का नाम अज्ञात है । वे जैन विद्वान् होंगे, ऐसा कृति में दिये गये जैन ग्रंथकारों के नाम और जैन परिभाषा आदि देखते हुए अनुमान होता है । ग्रंथकार आचार्य हेमचंद्र के 'छन्दोऽनुशासन' से परिचित हैं ।
'कविदर्पण' में सिद्धराज जयसिंह, कुमारपाल, समुद्रसूरि, भीमदेव, तिलकसूरि, शाकंभरीराज, यशोघोषसूरि और सूरप्रभसूरि के नाम निर्दिष्ट हैं । ये सभी व्यक्ति १२-१३ वीं शती में विद्यमान थे । इस ग्रंथ में जिनचंद्रसूरि, हेमचंद्र - सूरि, सूरप्रभसूर, तिलकसूरि और ( रत्नावली के कर्ता ) हर्षदेव की कृतियों से अवतरण दिये गये हैं ।
छः उद्देशात्मक इस ग्रंथ में प्राकृत के २१ सम, १५ अर्धसम और १३ संयुक्त छंद बताये गये हैं । ग्रंथ में ६९ उदाहरण हैं जो स्वयं ग्रन्थकार ने ही रचे हो ऐसा मालूम होता है । इसमें सभी प्राकृत छंदों की चर्चा नहीं है । अपने समय में प्रचलित महत्त्वपूर्ण छंद चुनने में आये हैं । छंदों के लक्षणनिर्देश और वर्गीकरण द्वारा कविदर्पणकार की मौलिक दृष्टि का यथेष्ट परिचय मिलता है । इस ग्रन्थ में छंदों के लक्षण और उदाहरण अलग-अलग दिये गये हैं । '
१. यह ग्रन्थ वृत्तिसहित प्रो० वेलणकर ने संपादित कर पूना के भांडारकर प्राच्यविद्या संशोधन मंदिर के त्रैमासिक ( पु० १६, पृ० ४४-८९, पु० १७, पृ० ३७ – ६० और १७७ - १८४ ) में प्रकाशित किया है ।
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