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बालावबोधकार ने इस प्रकार कहा है :
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
तेषां पदे सुविख्याताः सूरयोऽमरकीर्त्तयः । तैश्चके बालावबोधोऽयं छन्दः कोशाभिधस्य वै ॥
छन्दः कन्दली :
'छन्दः कन्दली' के कर्ता का नाम अभी तक अज्ञात है । प्राकृत भाषा में निबद्ध इस ग्रंथ में 'कविदप्पण' की परिभाषा का उपयोग किया गया है ।
यह ग्रंथ अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है ।
छन्दस्तत्व :
अञ्चलगच्छीय मुनि धर्मनन्दनगणि ने 'छन्दस्तत्त्व' नामक छन्दविषयक ग्रन्थ की रचना की है । '
इन ग्रंथों के अतिरिक्त रामविजयगणिरचित छन्दः शास्त्र, अज्ञातकर्तृक छन्दोऽलङ्कार जिस पर किसी अज्ञातनामा आचार्य ने टिप्पण लिखा है, मुनि अजितसेनरचित छन्दःशास्त्र, वृत्तवाद और छन्दः प्रकाश — ये तीन ग्रंथ, आशा धरकृत वृत्तप्रकाश, चन्द्रकी र्तिकृत छन्दःकोश ( प्राकृत ) और गाथारत्नाकर, छन्दोरूपक, संगीतसहपिंगल इत्यादि नाम मिलते हैं ।
इस दृष्टि से देखा जाय तो छन्दःशास्त्र में जैनाचार्यों का योगदान कोई कम नहीं है । इतना ही नहीं, इन आचार्यों ने जैनेतर लेखकों के छन्दशास्त्र के ग्रन्थों पर टीकाएं भी लिखी हैं ।
जैनेतर ग्रन्थों पर जैन विद्वानों के टीकाग्रन्थ :
श्रुतबोध — कई विद्वान् वररुचि को 'श्रुतबोध' के कर्ता मानते हैं और कई कालिदास को | यह शीघ्र ही कंठस्थ हो सके ऐसी सरल और उपयोगी ४४ पद्यों की छोटी-सी कृति अपनी पत्नी को संबोधित करके लिखी गई है । छन्दों के लक्षण उन्हीं छन्दों में दिये गये हैं जिनके वे लक्षण हैं ।
इस ग्रंथ से पता चलता है कि कवियों ने प्रस्तारविधि से छन्दों की वृद्धि न करके लयसाम्य के आधार पर गुरु-लघु वर्णों के परिवर्तन द्वारा ही नवीन छंदों की रचना की होगी ।
१. इसकी हस्तलिखित प्रति छाणी के भंडार में है ।
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