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लिखा है कि विमान के मध्य में एक कीली या लीवर ( lever ) लगा होता
था। जिसके चलाने मात्र से एक चुटकी भर के छोटे से काल में (एकछोटिकावछिन्नकाले ) ४०८७ वेग की तरंगें उत्पन्न हो जाएँगी और उन्हें यदि शत्रुविमान की ओर अभिमुख कर दिया जाये तो शत्रुविमान वेग से चक्कर खाकर खण्डित हो जायेगा। ___ "परशब्दग्राहक" या "रूपाकर्षक" तथा "क्रियाग्रहणरहस्य" का भी वर्णन दिया हुआ है। उस समय का परशब्दग्राहक यंत्र आजकल के रेडियो से अधिक उत्तम इसलिये था क्योंकि आजकल तब तक radio शब्द ग्रहण नहीं करता जबतक दूसरी ओर से शब्द को प्रसारित ( broadcast) न किया जाये । कोई भी व्यक्ति अपनी बातें शत्रु के लिये प्रसारित नहीं करता तथापि उस समय का परशब्दग्राहकरहस्य सब कुछ ग्रहण कर लेता था। वहाँ लिखा है-"परविमानस्थजनसम्भाषणादि सर्व शब्दाकर्षणं" अर्थात् शब्द पकड़ते थे। इसी प्रकार परविमानस्थित वस्तुरूपाकर्षण भी करने के यन्त्र थे। "क्रियाग्रहणरहस्य" विशेष रश्मियों और द्रावक शक्ति तथा सप्तवर्गी सूर्यकिरणों को दर्पण द्वारा एक शुद्धपट ( White screen ) पर प्रसारित करने पर दूसरों के विमान या पृथिवी अथवा अंतरिक्ष में जहाँ कहीं कोई भी क्रिया हो रही होती थी उसके स्वरूप प्रतिबिम्ब ( Images ) शुद्धपट पर मूर्तिवत् चित्रित हो जाते थे जिसे देख कर दूसरों की सब क्रियाओं का पता चल जाता था। यह आजकल के Kinometography या Television के समान यन्त्र था। ___अपने प्राचीन विमानों की विशेषताओं का कितना और वर्णन किया जावे, इस प्रकार के अनेकों अद्भुत चमत्कार करने वाले यंत्र हमारे विद्वान् खेटशास्त्री जानते थे । स्थानाभाव के कारण इन यन्त्रों के विषय में अधिक नहीं लिख सकते इसलिये तीसरे तथा चौथे सूत्र का संक्षेप में वर्णन करते हैं। तीसरा सूत्र है : पञ्चज्ञश्च १ ॥ ३ ॥
बोधानन्द की वृत्ति है कि पाँचों को जानने वाला ही अधिकारी चालक हो सकता है। उसने आकाश में पाँच प्रकार के आवर्त, भ्रमर या बवण्डरों का वर्णन किया है । “पञ्चावर्त" का शौनक ने विस्तार से वर्णन किया है। वे हैं रेखापथ, मण्डल, कक्ष्य, शक्ति तथा केन्द्र । ये ५ प्रकार के मार्ग ( Space spheres ) आकाश में विमानों के लिये बताये हैं।
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