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४. संकोचन रहस्य - शत्रु के विमानों से घिरे अपने विमान को भाग निकलने के लिये अपने विमान की काया को ही सिकुड़ कर छोटा करके वेग को बहुत बढ़ा कर विमान में लगी एक ही कीली से यह प्रभाव प्राप्त किया जाने वाला रहस्य भी होता था । आजकल कोई भी विमान ऐसा अपने शरीर को छोटा या बड़ा नहीं कर सकता। प्राचीन विमान में एक ऐसा भी 'रहस्य' लगा होता था जिसे एक से दस रेखा तक चलाने से विमान उतना ही विस्तृत भी हो सकता था ।
इसी प्रकार अन्य अनेकों 'रहस्य' वर्णित हैं जिनके द्वारा विमान के अनेक रूप चलते-चलते बदले जा सकते थे जैसे अनेक प्रकार के धूम्रों की सहायता से महाभयप्रद काया का विमान, या सिंह, व्याघ्र, भालू, सर्प, गिरि, नदी वृक्षादि आकार के या अति सुन्दर, अप्सरारूप, पुष्पमाला से सेवित रूप भी अनेक प्रकार की किरणों की सहायता से बना लिये जाते थे। हो सकता है ये Play of colours, spectrums द्वारा उत्पन्न किये जाते हों ।
५. तमोमय रहस्य द्वारा अपनी रक्षार्थ अंधेरा भी उत्पन्न कर सकते थे । इसी प्रकार विमान के अगले भाग में संहारयंत्रनाल द्वारा सत जातीय धूम को षङ्गर्भविवेकशास्त्र में बताये अनुसार विद्युत् संसर्ग ( Expansion of gases by electric sparks ) से पांच स्कन्ध-वात नाली मुखों से निकली तरंगों वाली प्रलयनाशक्रियारूपी " प्रलय रहस्य" का वर्णन भी है ।
६. महाशब्दविमोहन रहस्य शत्रु के क्षेत्रों में बम बरसाने की अपेक्षा विमान में महाशब्दकारक ६२ ध्मानकलासंघण शब्द ( By 62 blowing chambers ) जो एक महाभयानक शब्द उत्पन्न करता था, जिससे शत्रुओं के मस्तिष्क पर किष्कुप्रमाण कम्पन ( Vibrations ) उत्पन्न कर देता था और उसके प्रभाव से स्मृति - विस्मरण हो शत्रु मोहित या मूर्च्छित हो जाते थे । आजकल के Acoustic science ( शब्द विज्ञान ) के जानने वाले जानते हैं कि शब्दतरंगें इस प्रकार की उत्पन्न की जा सकती हैं जो पत्थर की दीवार पर यदि टकराई जाय तो उस दीवार को भी तोड़ दें, मस्तिष्क का तो कहना ही क्या । इस प्रकार Acoustics विद्या - कोविद विमान में " महाशब्द - विमोहनरहस्य" के प्रभाव को सच्चा सिद्ध करता है ।
विमान की विचित्र गतियों अर्थात् सर्पवत् गति आदि को उत्पन्न करना एक ही कीली के आधार पर रखा गया था। इसी प्रकार शत्रु के विमान में अत्यन्त वेगवान कम्पन करने का " चापल रहस्य" भी होता या । इस रहस्य के विषय में
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