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छन्द
वृत्तजातिसमुच्चय :
'वृत्तजातिसमुच्चय' नामक छन्दोग्रन्थ को कई विद्वान् 'कविसिह', 'कृतसिद्ध' और 'छन्दोविचिति' नाम से भी पहिचानते हैं। पद्यमय प्राकृत भाषा में निबद्ध इस कृति' के कर्ता का नाम है विरहांक या विरहलांछन ।
कर्ता ने सद्भावलांछन, गन्धहस्ती, अवलेपचिह्न और पिंगल नामक विद्वानों को नमस्कार किया है । विरहांक कब हुए, यह निश्चित नहीं है। ये जैन थे या नहीं, यह भी ज्ञात नहीं है। __'काव्यादर्श' में 'छन्दोविचिति' का उल्लेख है, परन्तु वह प्रस्तुत ग्रन्थ है या इससे भिन्न, यह कहना मुश्किल है। सिद्धहेम-व्याकरण (८. ३. १३४) में दिया हुआ 'इअराई' से शुरू होनेवाला पद्य इस ग्रन्थ (१. १३) में पूर्वाधरूप में दिया हुआ है। सिद्धहेम-व्याकरण (८. २. ४०) की वृत्ति में दिया हुआ 'विद्धकइनिरूविअं' पद्य भी इस ग्रन्थ ( २. ८) से लिया गया होगा क्योंकि इसके पूर्वार्ध में यह शब्द-प्रयोग है। इससे इस छंदोग्रन्थ की प्रामाणिकता का परिचय मिलता है।
इस ग्रन्थ में मात्रावृत्त और वर्णवृत्त की चर्चा है। यह छः नियमों में विभक्त है। इनमें से पांचवां नियम, जिसमें संस्कृत साहित्य में प्रयुक्त छन्दों के लक्षण दिये गये हैं, संस्कृत भाषा में है, बाकी के पांच नियम प्राकृत में निबद्ध हैं ।
छठे नियम में श्लोक ५२-५३ में एक कोष्ठक दिया गया है, जो इस प्रकार है:
४ अंगुल = १ राम ३ राम=१ वितस्ति २ वितस्ति = १ हाथ २ हाथ =१ धनुधर २००० धनुधर = १ कोश ८ कोश = १ योजन
१. इसकी हस्तलिखित प्रति वि० सं० ११९२ की मिलती है। २. यह ग्रंथ Journal of the Bombay Branch of the Royal
Asiatic Society में छप गया है।
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