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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास इस ग्रंथ पर ग्रंथकार ने स्वोपज्ञ वृत्ति की रचना की है। यह सब मिलाकर ५४० श्लोकात्मक कृति है। छन्दोविद्या :
कवि राजमल्लजी आचारशास्त्र, अध्यात्म, काव्य और न्यायशास्त्र के प्रकांड पंडित थे, यह उनके रचे हुए अन्यान्य ग्रंथों से विदित होता है। छन्दःशास्त्र पर भी उनका असाधारण अधिकार था। उनके रचित 'छन्दोविद्या' (पिंगल ) ग्रंथ की २८ पत्रों की हस्तलिखित प्रति देहली के दिगंबरीय शास्त्रभंडार में है । इस ग्रंथ की श्लोक-संख्या ५५० है।
कवि राजमलजी १६ वीं शताब्दी में हुए थे। 'छन्दोविद्या' की रचना राजा भारमल्लजी के लिये की गई थी। छंदों के लक्षण प्रायः भारमल्लजी को संबोधन करते हुए बताये गये हैं। ये भारमल्लजी श्रीमालवंश के श्रावकरत्न, नागोरी तपागच्छीय आम्नाय के माननेवाले तथा नागोर देश के संघाधिपति थे । इतना ही नहीं, वे शाकंभरी देश के शासनाधिकारी भी थे।
छन्दोविद्या अपने ढंग का अनूठा ग्रंथ है । यह संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और हिंदी में निबद्ध है। इनमें भी प्राकृत और अपभ्रंश मुख्य हैं। इसमें ८ से ६४ पद्यों में छंदशास्त्र के नियम, उपनियम बताये गये हैं, जिनमें अनेक प्रकार के छंद-भेद, उनका स्वरूप, फल और प्रस्तारों का वर्णन है। कवि राजमल्लजी के सामने पूज्यपाद का छन्दशास्त्रविषयक कोई ग्रंथ मौजूद था। छन्दोविद्या में बादशाह अकबर के समय की अनेक घटनाओं का उल्लेख है।
यह ग्रन्थ अभी अप्रकाशित है ।'
कवि राजमल्लजी ने १. लाटीसंहिता, २. जम्बूस्वामिचरित, ३. अध्यात्मकमलमार्तण्ड एवं ४. पञ्चाध्यायी की भी रचना की है। पिङ्गलशिरोमणि :
'पिङ्गलशिरोमणि' नामक छन्द-विषयक ग्रन्थ की रचना मुनि कुशललाम ने की है। इन्होंने जूनी गुजराती-राजस्थानी में अनेक ग्रन्थों की रचना की है परन्तु संस्कृत में इनकी यही एक रचना उपलब्ध हुई है। कवि कुशललाभ खरतरगच्छीय उपाध्याय अभय धर्म के शिष्य थे। उनकी भाषा से मालूम पड़ता
१. इस ग्रंथ का कुछ परिचय ‘भनेकांत' मासिक (सन् १९४१ ) में प्रका
शित हुभा है।
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