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छन्द
है कि उनका जन्म मारवाड़ में हुआ होगा। उनके गृहस्थ जीवन के संबंध में कुछ भी जानकारी नहीं मिलती । 'पिङ्गलशिरोमणि' ग्रन्थ की रचना का समय ग्रन्थ की प्रशस्ति में वि० सं० १५७५ बताया गया है।
'पिङ्गलशिरोमणि' में छन्दों के सिवाय कोश और अलंकारों का भी वर्णन है । आठ अध्यायों में विभक्त इस ग्रन्थ में अधोलिखित विषय वर्गीकृत हैं :
१. वर्णावर्णछन्दसंज्ञाकथन, २-३. छन्दोनिरूपण, ४. मात्राप्रकरण, ' ५. वर्णप्रस्तार-उद्दिष्ट-नष्ट-निरूपताका-मर्कटी आदि षोडशलक्षण, ६. अलङ्कारवर्णन, ७. डिङ्गलनाममाला और ८. गीतप्रकरण ।
इस ग्रन्थ से मालूम पड़ता है कि कवि कुशललाभ का डिंगलभाषा पर पूर्ण अधिकार था।
कवि के अन्य ग्रन्थ इस प्रकार हैं : १. ढोला-मारूरी चौपाई (सं० १६१७ ), २. माधवानलकामकन्दला चौपाई ( सं० १६१७ ), ३. तेजपालरास (सं० १६२४), ४. अगडदत्त-चौपाई (सं० १६२५ ), ५. जिनपालित-जिनरक्षितसंधि-गाथा ८९ (सं० १६२१), ६. स्तम्भनपार्श्वनाथस्तवन, ७. गौडीछन्द, ८. नवकारछन्द, ९. भवानीछन्द, १०. पूज्यवाहणगीत आदि । आर्यासंख्या-उद्दिष्ट-नष्टवर्तनविधि :
उपाध्याय समयसुन्दर ने छन्द-विषयक 'आर्यासंख्या-उद्दिष्ट-नष्टवर्तनविधि' नामक ग्रन्थ की रचना की है। इसमें आर्या छन्द की संख्या और उद्दिष्ट-नष्ट विषयों की चर्चा है। इसका प्रारंभ इस प्रकार है :
जगणविहीना विषमे चत्वारः पञ्चयुजि चतुर्मात्राः ।
द्वौ षष्ठाविति चगणास्तद्घातात् प्रथमदलसंख्या ।। १७ वी शताब्दी में विद्यमान उपाध्याय समयसुन्दर ने संस्कृत और जूनी गुजराती में अनेक ग्रन्थों की रचना की है।
१. इसकी तीन पत्रों की प्रति अहमदाबाद के ला० द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर के संग्रह में है। यह प्रति १८ वीं शताब्दी में लिखी गई मालूम होती है।
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