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छन्द
उपाध्याय यशोविजयगणि ने इस 'छन्दोऽनुशासन' मूल पर या उसकी स्वोपज्ञ वृत्ति पर वृत्ति की रचना को है, ऐसा माना जाता है। यह वृत्ति उपलब्ध नहीं है। __ वर्धमानसूरि ने भी इस 'छन्दोऽनुशासन' पर वृत्ति रची है, ऐसा एक उल्लेख मिलता है । यह वृत्ति भी अनुपलब्ध है ।
आचार्य विजयलावण्यसूरि ने भी इस 'छन्दोऽनुशासन' पर एक वृत्ति की रचना की है जो लावण्यसूरि जैन ग्रन्थमाला, बोटाद से प्रकाशित हुई है । छन्दोरत्नावली:
संस्कृत में अनेक ग्रन्थों की रचना करनेवाले 'वेणीकृपाण' विरुदधारी आचार्य अमरचन्द्रसूरि वायडगच्छीय आचार्य जिनदत्तसूरि के शिष्य थे । वे गुर्जरनरेश विशलदेव ( वि० सं० १२४३ से १२६१ ) की राजसभा के सम्मान्य विद्वद्रत्न थे।
_ इन्हीं अमरचन्द्रसूरि ने संस्कृत में ७०० श्लोक प्रमाण 'छन्दोरत्नावली' ग्रंथ की रचना पिंगल आदि पूर्वाचार्यों के छन्दग्रंथों के आधार पर की है। इसमें नौ अध्याय हैं जिनमें संज्ञा, समवृत्त, अर्धसमवृत्त, विषमवृत्त, मात्रावृत्त, प्रस्तार आदि, प्राकृतछन्द, उत्साह आदि, षट्पदी, चतुष्पदी, द्विपदी आदि के लक्षण उदाहरणपूर्वक बताये गये हैं। इसमें कई प्राकृत भाषा के भी उदाहरण हैं। इस ग्रंथ का उल्लेख खुद ग्रंथकार ने अपनी 'काव्यकल्पलतावृत्ति' में किया है । ____ यह ग्रंथ अभी तक अप्रकाशित है। छन्दोनुशासन:
महाकवि वाग्भट ने अपने 'काव्यानुशासन' की तरह 'छन्दोऽनुशासन' की भी रचना' १४ वीं शताब्दी में की है। वे मेवाड़ देश में प्रसिद्ध जैन श्रेष्ठी नेमिकुमार के पुत्र और राहड के लघुबन्धु थे।
संस्कृत में निबद्ध इस ग्रन्थ में पांच अध्याय हैं। प्रथम संज्ञासम्बन्धी, दूसरा समवृत्त, तीसरा अर्धसमवृत्त, चतुर्थ मात्रासमक और पञ्चम मात्राछन्दसम्बन्धी है। इसमें छन्दविषयक अति उपयोगी चर्चा है।
१. श्रीमन्नेमिकुमारसूनुरखिलप्रज्ञालचूडामणि
श्छन्दःशास्त्रमिदं चकार सुधियामानन्दकृत् वाग्भटः ॥
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