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जेन साहित्य का बृहद् इतिहास यह एक विचारणीय प्रश्न है कि मुनि नंदिपेण के 'अजित-शान्तिस्तव' (प्राकृत ) में प्रयुक्त छन्दों के नाम हेमचन्द्र के 'छन्दोऽनुशासन' में क्यों नहीं हैं ? छन्दोनुशासन-वृत्ति : __ आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने अपने 'छन्दोऽनुशासन' पर वोपज्ञ वृत्ति की रचना की है, जिसका अपर नाम 'छन्दश्चूडामणि' भी है। इस स्वोपज्ञ वृत्ति में दिया गया स्पष्टीकरण और उदाहरण 'छन्दोऽनुशासन' की महत्ता को बढ़ाते हैं। इसमें भरत, सैतव, पिंगल, जयदेव, काश्यप, स्वयंभू आदि छन्दशास्त्रियों का
और सिद्धसेन ( दिवाकर ), सिद्धराज, कुमारपाल आदि का उल्लेख है । कुमारपाल के उल्लेख से यह वृत्ति उन्हीं के समय में रची गई, ऐसा फलित होता है।
इस वृत्ति में जो संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश के पद्य हैं उनका ऐतिहासिक और शास्त्रीय चर्चा की दृष्टि से महत्त्व होने से उन सब के मूल आधारस्थान ढूँढ़ने चाहिए।
१. 'नमोऽस्तु वर्धमानाय' से शुरू होनेवाला पद्य यति के उदाहरण में अ० १, सू० १५ की वृत्ति में दिया गया है।
२. 'जयति विजितान्यतेजाः...' पद्य अ० ४, सू० ५५ की वृत्ति में है।
३. उपजाति के चौदह प्रकार अ० २, सू०, १५५ की वृत्ति में बताकर 'दशवैकालिक' अ० २ का पांचवां पद्य और अ० ९, उ० १ के दूसरे पद्य का अंश उद्धृत किया गया है।
४. अ० ४, सू० ५ की वृत्ति के 'कमला' से शुरू होनेवाले तीन पद्य 'गाहालक्खण' के ४० से ४२ पद्य के रूप में कुछ पाठभेदपूर्वक देखे जाते हैं। .
५. अ० ५, सू० १६ की वृत्ति में 'तिलकमञ्जरी' का 'शुष्कशिखरिणी' से शुरू होनेवाला पद्य उद्धृत किया गया है।
६. अ० ६, सु० १ की वृत्ति में मुञ्ज के पांच दोहे मुख्य प्रतीकरूप से देकर उन्हें कामदेव के पंच बाणों के तौर पर बताया गया है। ___७. अ० ७ में द्विपदी खंड का उदाहरण हर्ष की 'रत्नावली' से दिया गया है।
यह एक ज्ञातव्य बात है कि अ० ४, सू० १ की वृत्ति में 'आर्या' को संस्कृतेतर भाषाओं में 'गाथा' कहा गया है।
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