________________
मलङ्कार
१२९
विदुग्धमुखमण्डन-बालावबोध :
आचार्य जिनचंद्रसूरि (वि. सं. १४८७–१५३०) के शिष्य उपाध्याय मेरुसुन्दर ने 'विदग्धमुखमण्डन' पर जूनी गुजराती में 'बालावबोध' की १४५४ श्लोक-प्रमाण रचना की है। इन्होंने षष्टिशतक, वाग्भटालंकार, योगशास्त्र इत्यादि ग्रंथों पर भी बालावबोध रचे हैं । अलंकारावचूर्णि:
काव्यशास्त्रविषयक किसी ग्रन्थ पर 'अलंकारावचूर्णि' नामक टीका की १२ पत्रों की हस्तलिखित प्रति प्राप्त होती है। यह ३५० श्लोकों की पांच परिच्छे. दात्मक किसी कृति पर १५०० श्लोक-परिमाण वृत्ति-अवचूरि है। इसमें मूल कृति के प्रतीक ही दिये गये हैं । मूल कृति कौन-सी है, इसका निर्णय नहीं हुआ है। इस अवचूरि के कर्ता कौन हैं, यह भी अज्ञात है। अवचूरि में एक जगह (१२ वे पत्र में) 'जिन' का उल्लेख है । इससे तथा 'अवचूरि' नाम से भी यह टीका किसी जैन की कृति होगी, ऐसा अनुमान होता है।
-
--
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org