SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२३ वक्रोक्तिपंचाशिका : रत्नाकर ने 'वक्रोक्तिपंचाशिका' नामक ग्रन्थ की रचना की है। इसका उल्लेख जैन ग्रन्थावली, पृ० ३१२ में है। इसमें वक्रोक्ति के पचास उदाहरण हैं या वक्रोक्ति अलंकारविषयक पचास पद्य हैं, यह जानने में नहीं आया। रूपकमञ्जरी: गोपाल के पुत्र रूपचंद्र ने १०० श्लोक परिमाण एक कृति की रचना वि० सं० १६४४ में की है। इसका उल्लेख जैन ग्रन्थावली, पृ० ३१२ में है। जिनरत्नकोश में इसका निर्देश नहीं है, परंतु यह तथ्य उसमें पृ० ३३२ पर 'रूपमञ्जरीनाममाला' के लिये निर्दिष्ट है। ग्रंथ का नाम देखते हुए उसमें रूपक अलंकार के विषय में निरूपण होगा, यह अनुमान होता है। इस दृष्टि से यह ग्रंथ अलंकार-विषयक माना जा सकता है। रूपकमाला: 'रूपकमाला' नाम की तीन कृतियों के उल्लेख मिलते हैं : १. उपाध्याय पुण्यनन्दन ने 'रूपकमाला' की रचना की है और उस पर समयसुन्दरगणि ने वि० सं० १६६३ में 'वृत्ति' की रचना की है। २. पार्श्वचंद्रसूरि ने वि० सं० १५८६ में 'रूपकमाला' नामक कृति की रचना की है। ३. किसी अज्ञातनामा मुनि ने 'रूपकमाला' की रचना की है। ये तीनों कृतियाँ अलंकारविषयक हैं या अन्यविषयक, यह शोधनीय है। काव्यादर्श-वृत्ति: महाकवि दंडी ने करीब वि० सं० ७०० में 'काव्यादर्श' ग्रंथ की रचना की है। उसमें तीन परिच्छेद हैं। प्रथम परिच्छेद में काव्य की व्याख्या, प्रकार तथा वैदर्भी और गौडी-ये दो रीतियां, दस गुण, अनुप्रास और कवि बनने के लिये त्रिविध योग्यता आदि की चर्चा है। दूसरे परिच्छेद में ३५ अलंकारों का निरूपण है । तीसरे में यमक का विस्तृत निरूपण, भाँति-भाँति के चित्रबंध, सोलह प्रकार की प्रहेलिका और दस दोषों के विषय में विवरण है ! इस 'काव्यादर्श' पर त्रिभुवनचंद्र अपरनाम वादी सिंहसूरि ने' टीका की १. ये वादी सिंहसूरि शायद वि० सं० १३२४ में 'प्रश्नशतक' की रचना करनेवाले कासद्रह गच्छ के नरचंद्रसूरि के गुरु हैं। देखिए-जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० ४१३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy